एक खाली चौकी
हिमाचल की एक शांत पहाड़ी के ढलान पर बसा एक छोटा सा गांव — जहाँ सुबह-सुबह पक्षीयो की कूक, बांन और मौअरु के पत्तों सरसराहट, चूल्हे की चिमनी से उठता धुंआ, गोबर से लीपा आंगन और आंगन के कोने में पक्षियों के लीये रखा दान-पानी — जीवन की सरलता और सादगी को दर्शाता था। उसी गाँव में एक पुराना, खूबसूरत लकड़ी की नक्काशी और कटुआ पत्थरों से बना घर हैं, इस घर को मास्टर दीनानाथ के दादा जी ने बनवाया था।
मास्टर जी बहुत दयालू, सरल व संत स्वभाव के व्यक्ति थे। मास्टर दीनानाथ जी कभी गांव के स्कूल में प्रधानाध्यापक रहे थे। उन्होंने गांव के कई पीढ़ियों को पढ़ाया, संस्कार दिए, और अपने व्यवहार से हर किसी का दिल जीता। सुबह तुलसी को जल देना, अख़बार पढ़ना और गांव के बच्चों को टॉफियां व शिक्षा सामग्री देना। गांव में सभी लोगो के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना उनके व्यक्तित्व व जीवन शैली का हिस्सा था।
लेकिन एक दिन वो घर सन्नाटे में डूबा था — क्योंकि 73 वर्षीय मास्टर दीनानाथ नहीं रहे।
सुबह-सुबह रोने की आवाज़ें आ रही थी, लेकिन कुछ ही घंटों में सब कुछ शांत हो गया। दिन भर बहुत लोगो का तांता रहा। अभी भी कई नाते-रिश्तेदार घर पर है। सबके लिए बेटे ने होटल से खाना मंगवाया हैं — "घर में आज खाना पकाने का झंझट नहीं चाहिए," क्योंकि आज सुबह से ही घर के सभी लोग व्यस्त रहे हैं। बहुएँ रिश्तेदारों को फोन कर रही थीं — किसे आना है, कौन नहीं आ पाएगा।
छोटे पोते मोबाइल पर खेल रहे थे। रिश्तेदार आते गए, कोई संवेदना के दो शब्द कहता, और फिर पकोड़े और चाय की ओर देखता।
शाम को गांव के कुछ बुज़ुर्गों ने चाय पर चर्चा करते हुए मास्टर जी को याद किया। "ईमानदार थे… ज्ञान का समंदर थे," एक बोला — फिर बात तुरंत बिजली बिल और सड़क मरम्मत पर आ गई।
अगले दिन पड़ोसी शिकायत कर रहा था — "इनके घर वालों ने पूजा के पत्ते हमारे दरवाजे के पास फेंक दिए, ये ठीक नहीं है।"
एक रिश्तेदार बोला — "यात्रा खर्च में मेरे 1500 रुपये लग गए, किसी ने पूछा तक नहीं।"
भीड़ धीरे-धीरे छँटने लगी। कुछ फोन ऐसे भी आए, जिन्हें अब तक पता नहीं था कि मास्टर जी चल बसे हैं। महीने के अंत तक बड़ी बहू किसी धारावाहिक पर हँसते-हँसते बोल पड़ी — "अब तो थोड़ा माहौल हल्का हो गया।"
वह चौकी, जिस पर मास्टर जी हर शाम बैठकर अख़बार पढ़ते थे — अब धूल से ढकी थी। वहां अब किसी को बैठते नहीं देखा गया।
कुछ महीने बीते, दीवार पर टंगी तस्वीर से अगरबत्ती का धुआँ ऊपर उठता रहा — लेकिन धीरे-धीरे उस तस्वीर को भी किसी नई फोटो से ढक दिया गया।
एक साल बाद पुण्यतिथि आई। आयोजन हुआ। लोगों ने खाना खाया। और अपने-अपने घर चले गए। मास्टर जी को आज बिल्कुल नाम मात्र का याद किया। — परिवार के भी सभी लोग अपने-अपने कार्य मे व्यस्त हो गए।
बच्चों की बोर्ड परीक्षाएं आने वाली थीं, छोटे पोते का मुंडन भी रुका हुआ था। मेहमानों को भी बुलाना हैं घर की पुताई भी करनी है, किसी की नौकरी लगी तो किसी का विवाह तय हुआ हैं। और मास्टर दीनानाथ?
बस यादों की किताब में एक अधखुला पन्ना बनकर रह गए।
कभी-कभी कोई पुरानी तस्वीर निकल आती है, तब एक पल के लिए किसी की आँखें भर आती हैं। शायद कहीं किसी मोड़ पर कोई कहता हो — "यार, मास्टर जी... कितने अच्छे इंसान थे।"
पर अब वह चौकी खाली है।
🌿 शिक्षा:
मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है।
हममें से अधिकांश लोग अपना पूरा जीवन दूसरों को खुश करने, समाज की मान्यताओं में ढलने और रिश्तेदारों की अपेक्षाओं में उलझे रहने में बिता देते हैं। लेकिन जब जीवन समाप्त होता है, तो यह दुनिया हमें उतनी ही जल्दी भूल जाती है, जितनी जल्दी हम कभी किसी त्योहार की सजावट हटाते हैं।
कड़वा है, पर सत्य यही है—आपके न रहने पर भी सबका जीवन चलता रहता है। इसलिए ज़िंदगी को अपने मन, आत्मा और सच्चे उद्देश्य से जीना चाहिए।
हर दिन किसी जरूरतमंद के लिए कुछ अच्छा कीजिए, किसी को मुस्कराने की वजह दीजिए, और अपना जीवन ऐसे जिएँ कि आपकी याद सिर्फ तस्वीरों में नहीं, दिलों में जिंदा रहे।
कर्म और करुणा ही वह शक्ति है जो आपको मृत्यु के बाद भी जीवित रखती है। 👉 अपने लिए जियो, पर दूसरों के लिए भी कुछ कर जाओ — यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य और सार है।
✍️ लेखक: नरेश शर्मा ।। संकल्पसेवा ।। 2025
आपका विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण है। कृपया संयमित भाषा में कमेंट करें।