छाछरो की वीरगाथा: 1971 के युद्ध में भारतीय सेना का शौर्य और कर्नल हेम सिंह शेखावत की अमर कहानी
सन् 1971 का दिसंबर। थार रेगिस्तान की सुनहरी रेत सूरज की किरणों में चमक रही थी, लेकिन भारत और पाकिस्तान की सीमा पर युद्ध की आग धधक रही थी। यह वह समय था जब भारत, अपने पड़ोसी देश की आक्रामकता और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ, एक निर्णायक युद्ध लड़ रहा था। इस युद्ध ने न केवल एक नए राष्ट्र का निर्माण किया, बल्कि भारतीय सेना के शौर्य, साहस, और रणनीतिक कुशलता को विश्व पटल पर अमर कर दिया। इस युद्ध की सबसे गौरवमयी कहानियों में से एक थी छाछरो अभियान की गाथा, जिसमें कर्नल हेम सिंह शेखावत और 10 पैरा (स्पेशल फोर्सेस), जिन्हें "डेजर्ट स्कॉर्पियन्स" के नाम से जाना जाता है, ने पाकिस्तानी सेना को उनके ही क्षेत्र में धूल चटाकर तिरंगे का मान बढ़ाया था।
1971 का भारत-पाक युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था; यह एक मानवीय और रणनीतिक लड़ाई थी। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली नागरिकों पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों ने भारत को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया। मार्च 1971 में, पाकिस्तानी सेना ने "ऑपरेशन सर्चलाइट" शुरू किया, जिस ऑपरेशन में पूर्वी पाकिस्तानी नागरिकों पर बहुत अत्याचार किया गया। जिससे दुःखी होकर लाखों शरणार्थी भारत की सीमा में शरण लेने लगे, जिसने भारत के लिए नैतिक और रणनीतिक दोनों दृष्टिकोण से कार्रवाई को करना अनिवार्य बना दिया।
3 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी सीमा पर हवाई हमले शुरू किए, जिसके जवाब में भारत ने औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध दो मोर्चों पर लड़ा गया। पूर्वी मोर्चे पर भारत का लक्ष्य बांग्लादेश की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना था, जबकि पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेलना और भारत की सीमाओं की रक्षा करना था। पश्चिमी मोर्चे पर, राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर क्षेत्र में थार रेगिस्तान युद्ध का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। यहीं से शुरू होती है छाछरो अभियान की कहानी, जो भारतीय सेना की विशेष बलों की वीरता और रणनीतिक कौशल का प्रतीक बन गई।
युद्ध का प्रारंभ: 1971 की जंग की शुरुआत
राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक महत्वपूर्ण सीमा चौकी गडरा से इस अभियान का आरम्भ हुआ था। रात के अंधेरे में, जब रेगिस्तान की सन्नाटे भरी हवाएं सनसना रही थीं, जयपुर के पूर्व महाराजा और ब्रिगेडियर स्वर्गीय भवानी सिंह के अदम्य साहस और युद्ध कौशल के नेतृत्व में 10 पैरा SF की दो टीमें—अल्फा और चार्ली—जोंगा और जीपों में सवार होकर निकल पड़ीं। उनके साथ थे कर्नल हेम सिंह शेखावत, जिनका साहस और नेतृत्व इस अभियान की रीढ़ बना।
7 दिसंबर 1971 की रात को एक ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। भारतीय सेना की 10 पैरा स्पेशल फोर्सेस, जिसे "डेजर्ट स्कॉर्पियन्स" के नाम से जाना जाता था, ने छाछरो रेड की शुरुआत की। यह अभियान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में स्थित छाछरो नामक जगह पर कब्जा करना था। जो भारत-पाक सीमा से लगभग 80-90 किलोमीटर अंदर है। यह कोई साधारण मिशन नहीं था। रेगिस्तानी इलाके की चुनौतियां—रेत के टीले, सीमित दृश्यता, और दुश्मन की चौकस निगाहें—हर कदम पर खतरे को बढ़ा रही थीं। लेकिन भारतीय कमांडो, जिनके पास FN MAG GPMG, ब्रेन LMG, और अटूट साहस था, ने चुपके से दुश्मन की रेखाओं को भेदने की योजना बनाई। यह एक सर्जिकल स्ट्राइक थी, जिसमें गति, गोपनीयता, और आश्चर्य का तत्व सबसे महत्वपूर्ण था।
छाछरो अभियान की रणनीति अत्यंत सटीक और जोखिम भरी थी। इसका मुख्य उद्देश्य था:
- पाकिस्तानी चौकियों पर आश्चर्यजनक हमला: रात के अंधेरे में दुश्मन को बिना किसी चेतावनी के हमला करना।
- मनोबल तोड़ना: पाकिस्तानी सेना को यह दिखाना कि भारतीय सेना उनके क्षेत्र में अंदर तक हमला करने की क्षमता रखती है।
- क्षेत्र पर कब्जा: छाछरो तहसील मुख्यालय पर तिरंगा फहराकर भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना।
कर्नल हेम सिंह शेखावत: शौर्य का प्रतीक
ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में "कर्नल हेम सिंह शेखावत" इस अभियान में एक सच्चे योद्धा के रूप में उभरे। उन्होंने अपनी सेना की दो टीमें बनाईं। दोनों टीमें दो दिशाओं से आगे बढ़ीं। अल्फा टीम ने छाछरो की मुख्य चौकी को निशाना बनाया, जबकि चार्ली टीम ने पास की अन्य चौकियों को नष्ट करने का कार्य किया। रेगिस्तान की कठिन परिस्थितियों में, जहां हर कदम पर खतरा मंडरा रहा था, कर्नल शेखावत ने अपने सैनिकों को न केवल नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि उनके मनोबल को भी ऊंचा रखा। उनकी आवाज में एक ऐसी दृढ़ता थी, जो हर सैनिक को यह विश्वास दिलाती थी कि हम अजेय हैं।
कर्नल शेखावत ने बाद में इस अभियान को याद करते हुए कहा, “हमारी ताकत हमारा विश्वास थी। रेगिस्तान की रातें ठंडी थीं, लेकिन हमारे दिलों में देश के लिए जल रही आग हमें गर्म रखती थी। हर सैनिक जानता था कि यह मिशन न केवल छाछरो की जीत है, बल्कि भारत के सम्मान की रक्षा का प्रतीक है।
तिरंगे का गौरव: छाछरो पर विजय
छाछरो तहसील मुख्यालय, जो पाकिस्तानी सेना का एक महत्वपूर्ण गढ़ था, भारतीय सेना के इस हमले से दहल उठा। 10 पैरा SF ने न केवल छाछरो पर कब्जा किया, बल्कि छाछरो तहसील मुख्यालय पर तिरंगा लहराकर भारत के शौर्य का परचम फहराया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जब भारतीय सैनिकों ने दुश्मन के घर में घुसकर उनके गढ़ को ध्वस्त कर दिया। इस अभियान में 36 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, 22 को युद्धबंदी बनाया गया, और बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जब्त किया गया। सबसे गर्व की बात यह थी कि भारतीय पक्ष को कोई हताहत नहीं हुआ, जो इस अभियान की सटीक योजना और कर्नल शेखावत जैसे योद्धाओं की वीरता का प्रमाण था।
पाकिस्तानी सेना, इस अप्रत्याशित हमले से हक्की-बक्की रह गई और अपनी चौकियां छोड़कर भाग खड़ी हुई। छाछरो की रेत पर तिरंगे की यह जीत न केवल एक सैन्य विजय थी, बल्कि भारतीय सेना के अडिग साहस और रणनीतिक कुशलता का प्रतीक बन गई।
छाछरो अभियान का प्रभाव
छाछरो अभियान ने पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना के मनोबल को तोड़ दिया। यह जीत केवल एक तहसील पर कब्जे तक सीमित नहीं थी; इसने पाकिस्तानी सेना को यह अहसास करा दिया कि भारतीय सेना उनके क्षेत्र में अंदर तक हमला करने की क्षमता रखती है। इस अभियान ने 10 पैरा SF को "छाछरो 1971" बैटल ऑनर और 10 वीरता पुरस्कार दिलाए, जिसमें लेफ्टिनेंट कर्नल स्वाई भवानी सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया। कर्नल हेम सिंह शेखावत को "सेना मेडल" से सम्मानित गया।
🏅 "सेना मेडल" कब और किन्हें मिलता है ?
स्थिति | मिलेगा कब? |
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युद्धकालीन वीरता | यदि कोई सैनिक युद्ध क्षेत्र में अद्वितीय साहस और बलिदान दिखाता है |
गंभीर जोखिम में सेवा | जब सैनिक अत्यंत कठिन या जोखिम भरी स्थिति में जान की परवाह किए बिना मिशन पूरा करें |
साहसी कार्रवाई | दुश्मन के इलाके में सर्जिकल स्ट्राइक या ऑपरेशन में नेतृत्व दिखाने पर |
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जबकि छाछरो अभियान पश्चिमी मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण जीत थी, 1971 का युद्ध पूर्वी मोर्चे पर अपने चरम पर पहुंचा। भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी ने मिलकर पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना को घेर लिया। 9 और 10 दिसंबर को, भारतीय वायुसेना ने 409 उड़ानें भरीं, जिसमें 5,000 सैनिकों और 51 टन सैन्य साजो-सामान को मेघना नदी के पार उतारा गया। इस रणनीति ने पाकिस्तानी सेना को मनोवैज्ञानिक और सैन्य दबाव में डाल दिया। उसके बाद 16 दिसंबर 1971 को, ढाका में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी, पाकिस्तानी सेना के कमांडर, ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस ऐतिहासिक घटना में 92,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो आज भी विश्व सैन्य इतिहास में सबसे बड़ा समर्पण माना जाता है।
भारतीय सेना का गुणगान: शौर्य और साहस की मिसाल
भारतीय सेना की यह गाथा केवल सैनिकों की वीरता की कहानी नहीं है; यह एक राष्ट्र के संकल्प, एकता, और बलिदान की कहानी है। 1971 का युद्ध और छाछरो अभियान इस बात का प्रमाण है कि जब देश की आन-बान-शान की बात आती है, तो भारतीय सैनिक अपने प्राणों की बाजी लगाने से नहीं हिचकते। कर्नल हेम सिंह शेखावत जैसे योद्धाओं ने न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि समाज में भी एक मिसाल कायम की। उनके साहस ने रेगिस्तान की रेत को विजय के रंग में रंग दिया। उनकी शक्ति ने दुश्मन के गढ़ को ध्वस्त किया। और उनकी वीरता ने तिरंगे को उस ऊंचाई पर पहुंचाया, जहां हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो गया।
कर्नल हेम सिंह शेखावत: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
कर्नल हेम सिंह शेखावत: सेवानिवृत्ति के बाद की सेवाएं
क्रमांक | सेवा क्षेत्र | विवरण |
---|---|---|
1️⃣ | राष्ट्रीय चेतना | देशभक्ति जागरण हेतु युवाओं व समाज को राष्ट्रसेवा की प्रेरणा देना |
2️⃣ | रक्तदान अभियान | स्वयं रक्तदाताओं को सम्मानित कर, समाज में रक्तदान संस्कृति को बढ़ावा देना |
3️⃣ | मिशन रक्तक्रांति हिंदुस्तान | इस राष्ट्रीय जनचेतना अभियान के स्टार प्रचारक के रूप में युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित करना |
4️⃣ | गाय सेवा | गौसंवर्धन, गौशाला सहयोग व गौरक्षा के लिए समय और साधन समर्पित करना |
5️⃣ | प्रकृति सेवा | पौधारोपण, जल संरक्षण, व पर्यावरण चेतना अभियानों में सक्रिय भागीदारी |
6️⃣ | युवाओं का मार्गदर्शन | स्कूल, कॉलेज व NCC/NSS में प्रेरक व्याख्यान देना |
7️⃣ | स्वास्थ्य सेवा | चिकित्सा शिविरों, कोविड जनजागरूकता अभियानों में योगदान |
8️⃣ | सेना की गौरवगाथाओं का प्रचार | 1971 युद्ध और अन्य सैन्य अभियानों की जानकारी जनमानस तक पहुंचाना |
9️⃣ | एकता और सामाजिक सौहार्द | साम्प्रदायिक एकता, शांति और सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयास |
🔟 | सेवानिवृत्त सैनिकों के हितों की सेवा | पूर्व सैनिकों की पेंशन, सम्मान, पुनर्नियोजन और चिकित्सा सुविधाओं के लिए सरकार और समाज के समक्ष आवाज उठाना |
राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी और सम्मान
कर्नल हेम सिंह शेखावत ने अपनी राष्ट्रभक्ति और सेवा भावना के बल पर देशभर में रक्तदान और सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे कई प्रमुख कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए, जहाँ उनकी प्रेरक उपस्थिति ने लोगों को सामाजिक सेवा के लिए प्रोत्साहित किया।
चौटाला (हरियाणा), चौटाला गांव में 8 अक्टूबर 2023 को रिलेशन हेल्प फाउंडेशन राष्ट्रीय ट्रस्ट और रेड क्रॉस हरियाणा के सहयोग से रक्तदान महापर्व का आयोजन हुआ। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के 164 गांवों के साथ-साथ हिंदुस्तान के कई राज्यों और नेपाल के रक्तवीरों ने उत्साहपूर्वक रक्तदान किया। महापर्व में मोटिवेशनल प्रोग्राम, सम्मान समारोह और स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित हुए। पांच ब्लड बैंकों (डबवाली, सिरसा, अग्रवॉह, बठिंडा, गंगानगर) ने मिलकर 358 यूनिट रक्त एकत्रित किया। इस अवसर पर नरेश शर्मा (हिमाचल), वैशाली पंड्या (गुजरात), डॉ. संजीव मेहता (हरियाणा), और महेंद्र जोशी (गुजरात) कैप्टन सुरेश सैनी (हरियाणा) जनक खडका (नेपाल) डॉ. संदीप सागर वैशाली (बिहार) जैसे प्रेरणास्रोत भी उपस्थित थे। उनके नेतृत्व और प्रेरणा ने रक्तदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अलीपुरद्वार (पश्चिम बंगाल), 11 दिसंबर 2023: कर्नल शेखावत वीर बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय रक्तक्रांति समारोह में मुख्य अतिथि थे। इस रात्रिकालीन रक्तदान शिविर में भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और सऊदी अरब से भी रक्तदाता शामिल हुए। 141 रक्तदाताओं, पांच शहीद परिवारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को वीर बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कर्नल शेखावत की उपस्थिति ने कार्यक्रम में उत्साह और प्रेरणा का संचार किया। कार्यक्रम के सूत्रधार व शतकवीर रक्तदाता रंजीत मिश्रा जी व उनकी टीम ने अपने क्षेत्र की समृद्ध आदिवासी संस्कृति, परिवेश व खान-पान से भारत के विभिन्न राज्य के रक्तदाताओं को परिचित करवाया। ये कार्यक्रम बहुत ही शानदार व प्रेरणादायक था।
आसनसोल (पश्चिम बंगाल), 28 जुलाई 2024: महादेव सेवा फाउंडेशन ने रक्तदान व समाजसेवा से जुड़े लोगों के लिए सम्मान समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें कर्नल शेखावत को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। उन्होंने रक्तदाताओं और समाजसेवियों को प्रशस्ति पत्र दे कर सम्म्मनित किया और राष्ट्रसेवा व रक्तदान के महत्व को रेखांकित किया। । कर्नल शेखावत का समर्पण और नेतृत्व रक्तदान और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में एक मिसाल है। उनके प्रयासों ने देशभर में लोगों को एकजुट कर मिशन रक्तक्रांति हिंदुस्तान को नई दिशा दी है। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ महिला रक्तदाता श्री मती वैशाली पंड्या को भी महिला मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था।
भूटान -: भूटान के रक्तदाताओं ने भी भूटान से आमंत्रित किया गया, भूटान पहुंचने पर इमिग्रेशन ऑफिस के बाहर भूटान के स्थानीय लोगों व रेड क्रॉस भूटान से जुड़े लोगों ने उनका विशेष स्वागत किया, जिसमें पारंपरिक भूटानी शाल के साथ महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को भेंट स्वरूप दिया गया। अपने प्रेरक संबोधन में कर्नल शेखावत ने रक्तदान को मानवता की सेवा और भारत-भूटान मैत्री का प्रतीक बताया। भूटान रेड क्रॉस के राम शर्मा और खेम सिंह ने आयोजन में स्नेहपूर्ण सहयोग प्रदान किया। कर्नल शेखावत ने मिशन रक्तक्रान्ति हिंदुस्तान से जुड़े लोगो के साथ भूटान के पवित्र बौद्ध मंदिरों का भी दौरा किया, जहां उन्होंने शांति और मैत्री के लिए प्रार्थना की। उनकी उपस्थिति ने भूटान में रक्तदान जागरूकता को बढ़ावा दिया।
2. स्वर्णिम विजय वर्ष साइक्लोथॉन (2020)
1971 के भारत-पाक युद्ध की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में, कर्नल हेम सिंह शेखावत ने 2020 में लौंगेवाला सीमा चौकी पर "स्वर्णिम विजय वर्ष साइक्लोथॉन" को हरी झंडी दिखाई। यह आयोजन कोनार्क कोर द्वारा आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य साहसिक भावना को बढ़ावा देना, युवाओं को प्रेरित करना था।
- विवरण: यह "साइक्लोथॉन" एक ऐसा कार्यक्रम जिसका आयोजन साइकिलिंग को बढ़ावा देने और प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए किया गया। ये साइक्लोथॉन 1971 किलोमीटर का था, जो 1971 के युद्ध की जीत का प्रतीक था। इस कार्यक्रम में कर्नल शेखावत ने सक्रिय भागीदारी की और इसे शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रभाव: इस आयोजन ने न केवल 1971 के युद्ध की वीरता को याद किया, बल्कि युवाओं में देशभक्ति और साहस की भावना को जागृत किया। कर्नल शेखावत की उपस्थिति ने इस आयोजन को और अधिक प्रेरणादायक बनाया, क्योंकि उनकी सैन्य पृष्ठभूमि और छाछरो अभियान में योगदान ने उन्हें एक जीवंत प्रतीक के रूप में स्थापित किया।
3. चिकित्सा शिविरों और कोविड-19 जागरूकता अभियानों में योगदान
कर्नल शेखावत ने सेवानिवृत्ति के बाद चिकित्सा शिविरों और कोविड-19 जागरूकता अभियानों में सक्रिय योगदान दिया।
- कोविड-19 जागरूकता: कोविड-19 महामारी के दौरान, कर्नल शेखावत ने जागरूकता अभियानों में हिस्सा लिया, जिसमें लोगों को मास्क पहनने, सामाजिक दूरी बनाए रखने, और टीकाकरण के महत्व के बारे में बताया गया। उनकी सैन्य अनुशासन और नेतृत्व क्षमता ने इन अभियानों को प्रभावी बनाने में मदद की, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां जागरूकता की कमी थी।
4. युवाओं को प्रेरित करना और सैन्य गौरव का प्रचार
कर्नल शेखावत ने सेवानिवृत्ति के बाद युवाओं को देशभक्ति और सैन्य गौरव के प्रति प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- सैन्य अनुभवों का साझाकरण: वे विभिन्न मंचों, स्कूलों, और सामुदायिक आयोजनों में अपने सैन्य अनुभव साझा करते हैं, विशेष रूप से 1971 के छाछरो अभियान की कहानियां। उनके अनुभव युवाओं को सेना में शामिल होने और देश के लिए समर्पित जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं।
- राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसार: कर्नल शेखावत की राष्ट्रवादी विचारधारा ने उन्हें एक प्रेरणादायक वक्ता बनाया है। वे अपने व्याख्यानों और सार्वजनिक संबोधनों में देशभक्ति, एकता, और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे मूल्यों को बढ़ावा देते हैं। पश्चिम बंगाल में उनके संबोधनों ने विशेष रूप से युवाओं और समाजसेवियों के बीच गहरी छाप छोड़ी है।
- शिक्षा और प्रेरणा: वे युवाओं को शिक्षा और अनुशासन के महत्व के बारे में बताते हैं, जो उनकी सैन्य पृष्ठभूमि से प्रेरित है। उनके संदेशों ने कई युवाओं को सामाजिक कार्यों और राष्ट्रीय सेवा के लिए प्रेरित किया है।
5. पूर्व सैनिकों के कल्याण में योगदान:
- पूर्व सैनिकों के साथ संवाद: वे पूर्व सैनिकों के साथ नियमित रूप से मिलते हैं और उनके कल्याण के लिए आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। स्वर्णिम विजय वर्ष साइक्लोथॉन जैसे आयोजनों में उनकी उपस्थिति ने पूर्व सैनिकों को सम्मानित करने और उनकी समस्याओं को सुनने का अवसर प्रदान किया।
- पुनर्वास और समर्थन: कर्नल शेखावत ने पूर्व सैनिकों के पुनर्वास और सामाजिक एकीकरण के लिए विभिन्न पहलों का समर्थन किया है। उनकी सैन्य पृष्ठभूमि और अनुभव ने उन्हें पूर्व सैनिकों की चुनौतियों को समझने और उनके लिए समाधान सुझाने में मदद की है।
कर्नल शेखावत की प्रेरणादायक विरासत
कर्नल हेम सिंह शेखावत की सेवानिवृत्ति के बाद की गतिविधियां उनकी सैन्य सेवा की तरह ही प्रेरणादायक हैं। उन्होंने न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि समाज में भी एक मिसाल कायम की है। उनकी उपस्थिति ने पश्चिम बंगाल में रक्तदाताओं और समाजसेवियों के बीच एक नई ऊर्जा का संचार किया है। उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा, अनुशासित जीवनशैली, और सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पण ने उन्हें एक सच्चा राष्ट्रीय नायक बनाया है। उनके शब्दों में, “सैनिक का जीवन केवल युद्ध के मैदान तक सीमित नहीं है। हमारा कर्तव्य है कि हम समाज को भी उतना ही समर्पण दें, जितना हमने देश की सीमाओं के लिए दिया।” यह कथन उनकी सामाजिक सेवाओं के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।कर्नल शेखावत की ये सेवाएं न केवल उनकी सैन्य विरासत को मजबूत करती हैं, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण भी प्रस्तुत करती हैं।
बीकानेर में कर्नल हेम सिंह शेखावत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिष्टाचार भेंट
बीकानेर, राजस्थान की पावन धरा बीकानेर में आज एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायक और छाछरो अभियान के वीर योद्धा कर्नल हेम सिंह शेखावत (सेना मेडल) ने भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का पुष्पगुच्छ भेंट कर हार्दिक स्वागत किया। बीकानेर के गौरवमयी सेनानियों की ओर से यह स्वागत न केवल एक औपचारिक क्षण था, बल्कि देशभक्ति, साहस, और समाजसेवा के प्रति कर्नल शेखावत के अटूट समर्पण का प्रतीक भी था।
प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नल शेखावत की इस ऊर्जा और समर्पण की सराहना करते हुए कहा, “कर्नल साहब जैसे वीर न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि समाजसेवा में भी देश के लिए प्रेरणा हैं। उनकी गाथा हर भारतीय को गर्व से भर देती है।” कर्नल शेखावत ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा, “सत्कर्मों का हिसाब ईश्वर अपने पास रखता है, और इसका फल जरूर मिलता है। मैं केवल अपने देश की सेवा करना चाहता हूँ।”
बीकानेर की जनता ने इस मुलाकात को गर्व के साथ देखा। कर्नल शेखावत की यह सक्रियता और सादगी साबित करती है कि सच्ची देशभक्ति केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में जीवंत होती है। उनकी यह तस्वीर हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो समाज और देश के लिए कुछ करना चाहता है।
राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी से मुलाकात
राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायक और छाछरो अभियान के वीर योद्धा कर्नल हेम सिंह शेखावत से मुलाकात को एक गौरवपूर्ण क्षण बताया। इस मुलाकात में उन्होंने कर्नल शेखावत के साथ युद्ध की स्मृतियों को साझा किया, जो साहस, देशभक्ति, और त्याग की अमर गाथा का प्रतीक हैं। दीया कुमारी ने अपने पूज्य पिताजी, ब्रिगेडियर महाराजा सवाई भवानी सिंह MVC, के साथ कर्नल शेखावत की कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी गई जंग की यादों को नमन करते हुए कहा कि उनकी वीरता आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।
उपमुख्यमंत्री ने कर्नल शेखावत की आँखों में आज भी वही देशभक्ति की चमक देखी, जो 1971 में थार रेगिस्तान की रेत पर तिरंगा लहराते समय थी। उन्होंने कहा, “कर्नल साहब के साथ साझा की गई युद्ध की यादें न केवल रोमांचित करती हैं, बल्कि सिखाती हैं कि सच्ची देशभक्ति एक जीवन मूल्य है। जब उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, तो ऐसा लगा जैसे वीरता का एक जीवंत स्तंभ मेरे सामने खड़ा है। उनका आशीर्वाद भारत माँ के सच्चे सपूत की शक्ति और संकल्प का प्रतीक है।”
दीया कुमारी ने कहा, “कर्नल शेखावत और मेरे पिताजी जैसे रणबांकुरों का त्याग और उनकी गाथा युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेगी। उन्होंने कर्नल शेखावत के समाजसेवा में योगदान, विशेषकर रक्तदान आंदोलन में उनकी सक्रियता, की भी सराहना की।
कर्नल शेखावत ने इस मुलाकात में उपमुख्यमंत्री को आशीर्वाद देते हुए कहा, “आपके पिताजी और हमने जो जंग लड़ी, वह केवल सीमाओं की नहीं, भारत के सम्मान की थी। आज आप जैसे युवा नेता उस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।” यह मुलाकात राजस्थान के लिए गर्व का क्षण थी, जो 1971 की वीरता को आज भी जीवंत रखता है।
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