नेपाल दर्शन और अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन

Sankalp Seva
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नेपाल यात्रा

बाबा श्री पशुपतिनाथ मंदिर - काठमांडू

जब जीवन सेवा के पथ पर बढ़ता है, तो यात्राएँ केवल भौगोलिक नहीं रहतीं – वे आत्मिक हो जाती हैं। ऐसा ही अनुभव 7 मार्च 2024 की उस भोर का था, जब हम भारत से नेपाल की यात्रा पर दिल्ली से निकले थे। यह यात्रा केवल समाजसेवा से जुड़े लोगों का सम्मेलन ही नहीं थी बल्कि यह भावनाओं, संस्कृति, और सेवा-संस्कारों का संगम थी।

Blood donor Naresh Sharma -Sml

 नेपाल ब्लड डोनर एसोसिएशन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय रक्तदाता सम्मेलन में कई देशों के लोगों को आमंत्रित किया गया था, जो अपने-अपने देश में स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के साथ, थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए रक्तदान शिविर आयोजित करते हैं, और मानवीय सेवा के मिशन में निरंतर समर्पित रहते हैं। — जिसमे भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और ओडिशा से लोगो को चयनित किया गया था। उस चयन में हमें भी नेपाल जाने का सुअवसर मिला। इस नेपाल यात्रा के प्रेरणादायी सेमिनार के साथ नेपाल की लोक संस्कृति, ऐतिहासिक इमारतों, मंदिरों व नेपाल की राजधानी काठमांडू के लोगो की जीवन शैली को संक्षिप्त रूप से परिचित करवाने की कोशिश करूंगा। जब कभी भी आपको नेपाल जानें का सुअवसर मिलें तो जगहों पर भी आवश्यक रूप से जाएं।


दिल्ली एयरपोर्ट में मेरी ( ब्लड डोनर नरेश शर्मा शिमला हिमाचल प्रदेश) मुलाकात यमुनानगर, हरियाणा के रहने वाले मानवता के प्रेरक रक्षक डॉ. संजीव मेहता छिब्बर  जी से हुई । संयोग से हम दोनों की एक ही फ्लाइट थी। नेपाल पहुंचने पर जैसे ही हम त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, तो वहां हमारे स्वागत के लिए  नेपाल ब्लड डोनर संघ के प्रतिनिधि—जनक खड़का और बागमती नगर परिषद के पार्षद राजू भंडारी अपने सहयोगियों के साथ—उपस्थित थे। उन्होंने “जय पशुपतिनाथ” के जयघोष के साथ, नेपाली पारंपरिक टोपी, मफलर और फूलों की मालाएं पहनाकर हमारा आत्मीय स्वागत किया।

इसी क्षण, एक और आत्मिक व्यक्ति भी हमसे मिलने पहुंचे—रतन कर्माकर। वे नेपाली मूल के हैं, लेकिन उनका पूरा परिवार वर्षों से हिमाचल प्रदेश के सोलन में रहता है। रतन वहीं पले-बढ़े, शिक्षा प्राप्त की, और हिमाचल में सक्रिय रक्तदाता के रूप में अनेक वर्षों तक सेवा की हैं। उनसे हमारी पुरानी जान पहचान हैं। अब वे नेपाल में समाज सेवा और नेपाल की राजनीति दोनों में सक्रिय हैं। बहुत ही नेक दिल व्यक्तित्व हैं। उन्होंने भी बहुत स्नेह व आदर के साथ सत्कार किया।


स्वागत के बाद हमें विशेष रूप से ठहरने के लिए जिस स्थान पर ले जाया गया, उस होटल का नाम — Green Valley Resort हैं। यह काठमांडू की पहाड़ियों पर स्थित एक अत्यंत शांत, सुंदर और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर स्थल हैं। ऊँचाई पर स्थित इस रिसॉर्ट से नीचे काठमांडू शहर की सुंदरता दिखाई देती हैं।

Green Valley Resort-Nepal

यह रिसॉर्ट एक गाँव जैसा प्रतीत होता है—जिसमें अलग-अलग भवनों में रेस्टोरेंट, ठहरने के कमरे, पार्क, छोटा मंदिर और कई मनोरंजन के साधन हैं। इस रिसॉर्ट के हर कोने में फूलों की क्यारियां, कई तरह के पेड़- पौधे लगे हुए थे। जंगल व पहाड़ी  के बीच बना रिसॉर्ट बहुत अद्भुत हैं।

यहीं पहली रात हमारा ठहराव हुआ। रात को गुजरात से दो हमारे दो अन्य महान सेवाभावी साथी—महेंद्र भाई जोशी और वैशाली जी पंड्या—भी इस रिसॉर्ट में पहुँचे। दोनों वर्षों से गुजरात रेड क्रॉस के साथ मिलकर रक्तदान और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चो के लिए रक्तदान करने और शिविर के आयोजन करवाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

उन सभी के साथ रात्रि को, नेपाली पारंपरिक शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की गई थी, साथ मे नेपालि लोक संगीत की मधुर व पारम्परिक धुनों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था। 

अगली सुबह महाशिवरात्रि थी। हमें भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए निकलना था, लेकिन उससे पहले ब्लड डोनर असोसिएशन द्वारा प्रदान किए गए मुख्य होटल जाना था, जहां सभी प्रतिनिधियों के लिए कमरे आरक्षित थे। जैसे ही हम वहाँ पहुँचे, वहां पर हमारे नाम से कमरे पहले से बुक थे। उसी समय एक और विशेष व्यक्ति हमसे मिलने पहुँचे— जीवन खड़का। वे नेपाल में होटल और रिसॉर्ट के व्यवसाय में हैं और समाज सेवा से भी जुड़े हैं। 2023 में एक बार असम के गुहाटी में इनसे से हमारी मुलाकात हुई थी। ...... उन्होंने सादगी से कहा, “भाई, आप लोग हमारे लिए केवल अतिथि नहीं, बड़े भाई की तरह हैं। मैं चाहता हूँ कि आप लोग हमारे साथ हमारे होटल चलों। मैं आपको नेपाल भी दिखाऊँगा और कल सम्मेलन में भी साथ चलूँगा।” उनकी आत्मीयता ने हमें बाध्य कर दिया। हम उनके साथ उनके होटल पहुंचे। उनका Resort काठमांडू एयरपोर्ट से लगभग 2 किमी दूर “जड़ीबूटी” नामक क्षेत्र में स्थित है। यह क्षेत्र पर्वतों से आने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों और उनके औद्योगिक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इसी कारण इस जगह का नाम “जड़ीबूटी” हैं।

जीवन द्वारा मिला स्नेह

जीवन जब हमें होटल लेकर पहुँचे, तो वह क्षण केवल एक ठहराव नहीं, बल्कि आत्मीयता का अनुभव था। उन्होंने अत्यंत प्रेम और आदर के साथ सभी प्रतिनिधियों को अलग-अलग कमरों की व्यवस्था दी—इतनी सहजता से, मानो हम उनके अपने परिवार के सदस्य हों। इस प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन है।



उनकी मुस्कान, हर व्यक्ति की व्यक्तिगत जरूरतों का ध्यान, और यह विश्वास दिलाना कि “आप मेरे मेहमान नहीं, मेरे अपने हैं”—यही भाव जीवन के व्यक्तित्व को विशेष बनाता है। इस होटल में हमारे साथ जनक, पार्षद राजू भंडारी, और नेपाल ब्लड डोनर एसोसिएशन के कई सक्रिय साथी भी रुके हुए थे, जो हर पल हमें आत्मीयता और भाईचारे का एहसास कराते रहे।

कहते हैं, दाने-दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम, और यह बात हमारी नेपाल यात्रा में पूरी तरह साकार हो उठी। हमें किसी और ने आमंत्रित किया था, और उन्होंने भी रहने-खाने की समुचित व्यवस्था कर रखी थी। लेकिन नियति को कुछ और ही स्वीकार था।

यह यात्रा हमें बताती है कि हमारी भौगोलिक सीमाएँ जरूर है लेकिन भारत और नेपाल – दोनों देशों की आध्यात्मिक व सांस्कृतिक आत्मा एक ही छाया में पलती है।

"कभी-कभी बुलाने वाला कोई और होता है, पर पहुँचाने वाला ऊपर वाला होता है।"

जीवन का आतिथ्य और उनका अनोखा होटल – श्रद्धा और आधुनिकता का संगम

जीवन का आतिथ्य और उनका अनोखा होटल – श्रद्धा और आधुनिकता का संगम

नेपाल यात्रा के दूसरे दिन, हम जीवन खड़का जी के होटल पहुँचे। यह होटल काठमांडू के "जड़ी-बूटी" नामक क्षेत्र में स्थित है, जो त्रिभुवन एयरपोर्ट से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान हिमालय की दुर्लभ औषधियों के कारण प्रसिद्ध है, और जीवन जी का यह होटल उसी पवित्र भूमि का प्रतिनिधि लगता है।

होटल में दो प्रमुख रेस्टोरेंट हैं—पहला एक प्रसिद्ध शाकाहारी भोजनालय, जहाँ दूर-दूर से लोग पारंपरिक नेपाली-भारतीय व्यंजन खाने आते हैं। यहाँ की थाली में स्वाद, सादगी और शुद्धता का मेल आत्मिक तृप्ति देता है।

दूसरा रेस्टोरेंट एक आधुनिक बार सेक्शन है, जिसमें सौ से अधिक टेबल हैं। यह स्थान मुख्यतः अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों व व्यापारिक वर्ग के लिए है। जीवन जी अत्यंत संतुलन के साथ श्रद्धा और व्यापार के बीच की रेखा का सम्मान करते हैं।

"जहाँ परंपरा व्यवसाय से टकराए बिना उसे दिशा दे, वहाँ संस्कृति जीवित रहती है।"

जीवन जी ने बातचीत के दौरान बताया कि उनका जन्मस्थल माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप के पास एक गांव में है, जो यहाँ से 400 किलोमीटर दूर है। वे गर्व से कहते हैं – “हमारे पूर्वजों ने कभी मांस या मदिरा का सेवन नहीं किया, हम रुद्राक्ष और जनेऊ धारण करने वाले महादेव के भक्त हैं। मैंने भी यही परंपरा अपनाई है।”

हालाँकि वे ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि होटल व्यवसाय में रहते हुए बार चलाना उनकी आत्मा को स्वीकार नहीं, पर परिवार और सामाजिक जिम्मेदारी को निभाने के लिए यह आवश्यक बन गया है।

जीवन जी एक प्रेरणा हैं—उन लोगों के लिए जो आधुनिक युग में भी संस्कार और आत्मा की आवाज़ को जीवित रखते हैं। उनके होटल का हर कोना, हर सेवा, और हर मुस्कान एक भावनात्मक अनुभव है।

भाग 2: पशुपतिनाथ की नगरी में श्रद्धा और शिवत्व का आलोक | नेपाल यात्रा

 बाबा पशुपतिनाथ - श्रद्धा और शिवत्व

दूसरे दिन की सुबह काठमांडू की पवित्र हवा में श्रद्धा, भक्ति और महाशिवरात्रि के पुण्य पर्व की दिव्यता घुली हुई थी। —हर सांस में शिव का नाम, हर दिशा में घंटियों की ध्वनि और भक्तों की अपार आस्था का आलोक फैला रही थी। हम स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली मान रहे थे कि ऐसे दिव्य दिन, ऐसे पावन क्षण में, भगवान पशुपतिनाथ के दरबार में उपस्थित होकर दर्शन का अवसर प्राप्त हो रहा था।

सुबह-सुबह ही हमारे मित्र जीवन खड़का जी हमें स्वयं मंदिर ले जाने को तैयार बैठे थे। वे महादेव के अनन्य भक्त हैं—प्रत्येक सोमवार सुबह पशुपतिनाथ के दर्शन करना उनका जीवन का नियम है। उन्होंने बताया कि आज की भीड़ विशेष रूप से अधिक होगी, इसलिए उन्होंने होटल से मंदिर तक नेपाल की सरकारी बस से चलने की सलाह दी। 

नेपाल की ये सरकारी बसें बहुत सुंदर  और—आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। ये बसें व अन्य सभी वाहन दूसरे देशों से आयातित होते हैं। बस ने हमें मंदिर से कुछ दूर उतारा और वहाँ से हमने पैदल ही मंदिर परिसर की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में श्रद्धालुओं की लम्बी-लम्बी कतारें —कई किलोमीटर तक फैली हुईं थी। 

जीवन जी हमें मंदिर के मुख्य द्वार पर बने पुलिस चौकी पर लेकर गए। उन्होंने नेपाल ब्लड डोनर असोसिएशन के आमंत्रण का हवाला दिया और कहा कि अगले दिन एक बड़ा आयोजन यहाँ निर्धारित है। इन सबको विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया है। नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश से पहले ही नेपाल पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों ने स्पष्ट निर्देश दिए— “मंदिर परिसर के अंदर मोबाइल जेब से बाहर न निकालें, फोटो खींचना पूर्णतः प्रतिबंधित है। यदि कोई नियम तोड़ेगा, तो उसका मोबाइल जब्त कर लिया जाएगा।”

हैरानी की बात यह थी कि मंदिर के भीतर हज़ारों श्रद्धालु मौजूद थे, लेकिन किसी के हाथ में मोबाइल नहीं दिखा। यह केवल महादेव के प्रति श्रद्धा नहीं थी, बल्कि नेपाल की सुरक्षा एजेंसियों के नियमों का अनुशासित पालन  के साथ सच्ची आस्था और मर्यादा का प्रतीक भी है। 

पशुपतिनाथ नाम का अर्थ है – "पशुओं के स्वामी", जो सृष्टि के सभी जीवों के रक्षक भगवान शिव के करुणामय स्वरूप को दर्शाता है। मान्यता है कि स्वयं शिवजी ने पशु रूप में यहाँ तप किया था, और जब देवताओं ने उन्हें खोजा, तो उन्होंने हिरन रूप में यहीं निवास किया।  मंदिर में स्थापित शिवलिंग चतुर्मुखी है – चार दिशाओं में भगवान के चार रूप दर्शाते हैं: पूर्व में तत्पुरुष, पश्चिम में अघोर, उत्तर में वामदेव और दक्षिण में सद्योजात, जो पांचवां – ईशान – आकाश की ओर स्थित है।

मंदिर की संरचना पगोडा शैली में है, जिसकी दो मंज़िला छत सोने की बनी है। गर्भगृह में केवल हिंदू श्रद्धालुओं को प्रवेश की अनुमति है। आद्यात्मिक दृष्टि से दर्शन का महत्व अत्यंत उच्च माना जाता है — विशेषकर महाशिवरात्रि पर यहाँ लाखों श्रद्धालु शिवत्व की अनुभूति के लिए एकत्र होते हैं। यह स्थान मोक्षदायक और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। यहां पर नेपाल के कई राज्य से शव दाह संस्कार के लिए आते हैं। कहते है की जिनका दाह संस्कार पशुपतिनाथ के महाश्मशान में होता है, वह जीवन मरण के चक्र से छूट जाता है। 

🕉️ पशुपतिनाथ मंदिर से रक्तदान का पावन संदेश | सेवा और शिवभक्ति का संगम

मंदिर परिसर में नेपाल रेड क्रॉस सोसाइटी द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर चल रहा था।  निसमे के भक्त रक्तदान कर रहे थे। हम उस शिविर तक पहुँचे, वहाँ डॉक्टर और स्टाफ से बात की। उन्होंने जब जाना कि हम भारत से हैं और कल हम भी रक्तदान से जुड़ी गतिविधियों में भाग लेने आए हैं, तो उनका चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने कहा, “भारत हमारा बड़ा भाई है – दुःख-सुख का सच्चा साथी। आप लोगों का यहाँ आना हमारे लिए सम्मान की बात है।”

उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में हर सप्ताह मंगलवार व शनिवार को रक्तदान शिविर का आयोजन नेपाल रेड क्रोस सोसायटी व पशुपतिनाथ मंदिर कमेटी की ओर से किय्या जाता है। 

महाशिवरात्रि पर पशुपतिनाथ जैसे पवित्र तीर्थ  के दर्शन से मन व आंतरिक अंतरात्मा को सुखद आनन्द की अनुभूति देने वाला था। मंदिर की दिव्यता, श्मशान की यथार्थता और रक्तदान की सेवा—इन तीनों का एक साथ दर्शन होना, जीवन को गहराई से झकझोरने वाला अनुभव था।

कहते हैं कि  ईश्वर केवल मंदिरों में ही नहीं बसते, वे वहाँ भी रहते हैं जहाँ किसी असहाय व्यक्ति की निस्वार्थ सेवा , सहायता प्रदान की जाती है। यदि शिव को पाना है, तो शिव जैसा बनना होगा—करुणामय, त्यागी और सबके दुःख का हरने वाला। 

स्थान: बुढानिलकण्ठ मंदिर

भगवान विष्णु की शेषशायी मूर्ति के दुर्लभ दर्शन 

नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित बुढानिलकण्ठ मंदिर  भगवान श्री हरि का अद्भुत मंदिर हैं — इस मंदिर में शांत जल में शयन कर रहे शेषशायी भगवान विष्णु के दिव्य स्वरूप के दर्शन होते हैं। भगवान पशुपतिनाथ मंदिर दर्शन के बाद हम सभी लोगो को यहाँ दर्शन के लिए लाया गया — यहाँ पर  जनक खड़का, राजू भंडारी, अभिनेत्री संगीता शर्मा, शिक्षिका शकीला न्यूपुनिया और भारत से हमारे सहयात्री संजीव मेहता, महेंद्र भाई जोशी और वैशाली पांड्या आदि सभी लोग सम्मिलित थे — 

जैसे ही मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं, वहाँ क शांति, हरियाली और दिव्यता आत्मा को भीतर तक सुकून देती है। मंदिर का केंद्र बिंदु है — एक जलकुंड, जिसके मध्य में काले पत्थर से निर्मित 5 मीटर लंबी भगवान विष्णु की अद्भुत मूर्ति स्थित है। यह मूर्ति शेषनाग पर शयन करते हुए विष्णुजी के चतुर्भुज रूप को दर्शाती है — जिनके हाथों में चक्र, शंख, गदा और कमल हैं।

बुढानिलकण्ठ का शाब्दिक अर्थ है – "वृद्ध कंठ"। किंवदंती है कि यह मूर्ति एक किसान को उसके खेत में खुदाई के दौरान मिली थी, और तभी से इसे दैवीय मानकर पूजा जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, नेपाल का कोई भी राजा इस मंदिर में दर्शन नहीं करता, क्योंकि पूर्वकाल में एक राजा को यहाँ दर्शन के दौरान उसको अपना मृत्यु योग दिखाई दिया था। तब से यह एक परंपरा बन गई है।

जब हम इस शांत स्थल के सम्मुख खड़े हुए, तो लगा जैसे समय ठहर गया हो। जल के मध्य शयन कर रहे भगवान विष्णु मानो संसार की समस्त व्यस्तताओं से परे विश्राम कर रहे हों — और उनके समीप खड़े होकर, हमें भी असीम शांति की अनुभूति हो रही थी।

“यह मंदिर नहीं, विश्राम है। यहाँ आकर ईश्वर को नहीं, स्वयं को ढूंढा जाता है।”

हम सभी ने सामूहिक रूप से विष्णु के दुर्लभ स्वरूप के दर्शन किये और वहां के स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ कुछ पल बिताए। उस क्षेत्र के नगर अध्यक्ष से भी मुलाकात हुई। 

       भक्तपुर – प्राचीन नगर और जीवित धरोहर

नेपाल की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भक्तपुर बहुत प्रसिद्ध व दार्शनिक स्थल है, यह नेपाल की एक जीवंत धरोहर का जीता-जागता इतिहास, और हिंदू-बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम है। काठमांडू घाटी में स्थित यह नगर अपनी प्राचीन स्थापत्य कला, लोक संस्कृति और आध्यात्मिक वातावरण के लिए विश्वविख्यात है।

भक्तपुर की स्थापना 12वीं शताब्दी में मल्ल वंश के राजा अणंद देव मल्ल ने की थी। मल्ल वंश के शासनकाल में यह नगर राजनीतिक, सांस्कृतिक और तांत्रिक साधना का केंद्र बना। इसकी ईंटों से बनी गलियाँ, लकड़ी की बारीक नक्काशी वाली खिड़कियाँ, और तांबे के हस्तशिल्प आज भी अतीत की गौरवगाथा सुनाते हैं। यहाँ का ५५ खिड़कियों वाला महल, भैरवनाथ मंदिर और दत्तात्रेय चौक बहुत प्राचीन व प्रसिद्ध है। 

2015 में आए भयानक भूकंप ने भक्तपुर की ऐतिहासिक आत्मा को गहरा आघात पहुँचाया। कई मंदिर और पुरानी इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं। नेपाल सरकार, UNESCO, और जनसहयोग से इसका धैर्यपूर्वक पुनर्निर्माण हो रहा है। पर उस तरह की सुंदरता व निर्माण अब होना असंभव हैं जैसा प्राचीन काल मे किय्या गया था।

“भक्तपुर एक शहर नहीं, वह स्मृति है – और संस्कृति की साँसों से बना जीवंत अनुभव।”

 पाटन दरबार – सौंदर्य, श्रद्धा और शिल्प की त्रिवेणी

नेपाल की सांस्कृतिक त्रिमूर्ति – काठमांडू, भक्तपुर और पाटन – में से पाटन दरबार स्क्वायर एक ऐसा स्थल है, जहाँ इतिहास, वास्तुकला और आस्था एकाकार हो जाते हैं। यह काठमांडू घाटी के ललितपुर जिले में स्थित है और प्राचीन समय में इसे ‘ललितपुर’ यानी "सुंदर नगर" कहा जाता था। पाटन न केवल एक शिल्पनगरी है, बल्कि यह नेपाल की बौद्ध-हिंदू एकता का जीता-जागता प्रमाण है।  है। राजा सिद्धिनरसिंह मल्ल (17वीं शताब्दी) ने इस महल का निर्माण करवाया था। इसका शाही महल परिसर आज भी यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में संरक्षित है। इस क्षेत्र में अनेक मंदिर, स्तूप, विहार और धर्मशालाएँ हैं, जिनकी कलाकारी देखते ही बनती है।

“पाटन केवल स्थान नहीं, संस्कृति का जिंदा स्मारक है, जहाँ हर ईंट बोलती है।”

 शाम को : दो विपरीत संस्कृतियों का अनुभव

महाशिवरात्रि के दिव्य दर्शन और भक्तपुर–पाटन की ऐतिहासिक यात्रा के बाद, हम शाम को वापस जीवन खड़का जी के होटल, जड़ीबूटी लौटे। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने विशेष रूप से हमारे लिए नेपाली पारंपरिक शाकाहारी भोजन की व्यवस्था कर रखी थी। उनके होटल की निचली मंजिल पर एक शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट है, जहाँ लगभग 12–15 टेबल हैं। नेपाल में प्योर वेजिटेरियन रेस्टोरेंट बहुत कम मिलते हैं, और यही कारण है कि जो शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं वह लोग दूर-दूर से यहां भोजन करने आते हैं। भोजन को करने के बाद जीवन ने हमें होटल के पीछली साइड की ऊपरी मंज़िल पर ले चलने को कहा, जहाँ उनका एक और रेस्टोरेंट और बार संचालित होता है। उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि “वहाँ आपके बैठने लायक माहौल नहीं है, पर आप एक बार देखकर आइए।”

जिज्ञासावश हम सब ऊपर वाले रेस्टोरेंट में गए। ऊपर पहुँचते ही दृश्य बिल्कुल अलग था। वहाँ एक बहुत ही बड़ा रेस्टोरेंट था – लगभग  60 -70 से अधिक टेबल, और हर टेबल पर लोग बैठे थे। एक ओर डीजे स्टेज पर नेपाली संगीत की धुनें बज रही थीं और लोग झूमते हुए नाच रहे थे। ज़्यादातर लोग हँसी–ठिठोली और मस्ती के मूड में थे।

अधिकतर टेबल पर हुक्के रखे हुए थे, और ज्यादातर लोग शराब और हुके का सेवन कर रहे थे। कुछ टेबलों पर बर्थडे पार्टी मन रही थी, कुछ पर दोस्त व परिवार सहित आनंद ले रहे थे। यह दृश्य हमारे लिए अचंभित करने वाला था। हमने पहली बार नेपाल की सामाजिक शैली के इस स्वरूप को नजदीक से देखा – वहाँ शराब पीना और हुक्का पीना सामान्य और सामाजिक रूप से स्वीकृत गतिविधि मानी जाती है।

हमारे साथ होटल के ऊपरी हिस्से में मौजूद आधुनिक रेस्टोरेंट और बार दिखाते हुए जीवन खड़का जी ने एक बहुत भावुक और सच्चा संवाद किया। उन्होंने कहा:

मैं एक बहुत ही संस्कारी और आध्यात्मिक परिवार से हूँ। हमारा गाँव काठमांडू से करीब 400 किलोमीटर दूर, एवरेस्ट बेस कैम्प के पास है। हमारे पिता और दादा जी कभी भी मांस या मदिरा का सेवन नहीं करते हैं। हम रुद्राक्ष और जनेऊ धारण करने वाले बाबा पशुपतिनाथ के भक्त हैं। मैं और मेरे बच्चे भी इन्हीं मूल्यों का पालन करते हैं। लेकिन यहाँ शहर में परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मुझे यह व्यवसाय अपनाना पड़ा। मेरी आत्मा कभी इसे स्वीकार नहीं करती, पर समाजिक मजबूरियाँ और आर्थिक ज़रूरतें मुझे यह सब चलाने को विवश करती हैं।

उनकी आँखों में सच्चाई और मन में द्वंद्व साफ झलक रहा था। उनकी यह वार्ता दिल को छूने वाली थी। एक ओर व्यवसाय की कठोर ज़रूरतें, दूसरी ओर परंपराओं के प्रति निष्ठा — जीवन खड़का जैसे लोगों की यही संघर्षशीलता उन्हें विशेष बनाती है।

            अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन  – काठमांडू, नेपाल

 सुबह जब होटल "जड़ी-बूटी" से हम सम्मेलन स्थल के लिए रवाना हुए, तो वातावरण में एक अद्भुत उत्साह और गरिमा महसूस हो रही थी। आज सिर्फ एक आयोजन नहीं था—आज वो दिन था जब अनेक देशों से आए सेवा और समर्पण से जुड़े रक्तदाताओं का संगम होना था। नेपाल ब्लड डोनर एसोसिएशन द्वारा आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय रक्तदान सम्मेलन केवल एक मंच नहीं था, यह भावनाओं, सेवा और संस्कृतियों के आदान-प्रदान की जीवंत मिसाल बनने जा रहा था।

सम्मेलन स्थल की गरिमा और लोक-संस्कृति का स्वागत

जैसे ही हम सम्मेलन स्थल पहुँचे, वहाँ का दृश्य अत्यंत भावपूर्ण था। हाल के बाहर और भीतर हज़ारों लोगों की उपस्थिति, मीडिया की हलचल, रंगीन पारंपरिक परिधान में सजी लोक कलाकारों की टोली – सब कुछ आत्मा को छूने वाला था। जो विदेशी प्रतिनिधि नेपाल के बाहर से आए थे  – उनके लिए विशेष अतिथि स्वागत की व्यवस्था थी। नेपाल की परंपरागत लोक वाद्य यंत्रों, पंचकन्या नृत्य, और फूलमालाओं के साथ जैसे ही प्रतिनिधियों का स्वागत हुआ।

कार्यक्रम का आरंभ – वंदना और दीप प्रज्वलन

उनकी आँखों में सच्चाई और मन में द्वंद्व साफ झलक रहा था। उनकी यह वार्ता दिल को छूने वाली थी। एक ओर व्यवसाय की कठोर ज़रूरतें, दूसरी ओर परंपराओं के प्रति निष्ठा — जीवन खड़का जैसे लोगों की यही संघर्षशीलता उन्हें विशेष बनाती है।

            अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन  – काठमांडू, नेपाल

 सुबह जब होटल "जड़ी-बूटी" से हम सम्मेलन स्थल के लिए रवाना हुए, तो वातावरण में एक अद्भुत उत्साह और गरिमा महसूस हो रही थी। आज सिर्फ एक आयोजन नहीं था—आज वो दिन था जब अनेक देशों से आए सेवा और समर्पण से जुड़े रक्तदाताओं का संगम होना था। नेपाल ब्लड डोनर एसोसिएशन द्वारा आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय रक्तदान सम्मेलन केवल एक मंच नहीं था, यह भावनाओं, सेवा और संस्कृतियों के आदान-प्रदान की जीवंत मिसाल बनने जा रहा था।

सम्मेलन स्थल की गरिमा और लोक-संस्कृति का स्वागत

जैसे ही हम सम्मेलन स्थल पहुँचे, वहाँ का दृश्य अत्यंत भावपूर्ण था। हाल के बाहर और भीतर हज़ारों लोगों की उपस्थिति, मीडिया की हलचल, रंगीन पारंपरिक परिधान में सजी लोक कलाकारों की टोली – सब कुछ आत्मा को छूने वाला था। जो विदेशी प्रतिनिधि नेपाल के बाहर से आए थे  – उनके लिए विशेष अतिथि स्वागत की व्यवस्था थी। नेपाल की परंपरागत लोक वाद्य यंत्रों, पंचकन्या नृत्य, और फूलमालाओं के साथ जैसे ही प्रतिनिधियों का स्वागत हुआ।

कार्यक्रम का आरंभ – वंदना और दीप प्रज्वलन

कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना और गणेश वंदना से हुई। पूरे हाल में मंत्रोच्चारण और दीपों की लौ से जैसे आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। आयोजन की गंभीरता और गरिमा इस बात से झलकती थी कि प्रत्येक क्रिया को अत्यंत निष्ठा और मर्यादा के साथ संपन्न किया गया।

मुख्य अतिथि – नेपाल सरकार की सूचना एवं प्रसारण मंत्री रेखा शर्मा

आज के कार्यक्रम की मुख्य अतिथि – श्रीमती रेखा शर्मा, जो नेपाल सरकार की सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं। उनके आगमन पर पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत हुआ।

भारत की ओर से हमने ( नरेश शर्मा -शिमला)  हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक 'कुलवी टोपी', एक मफलर, और भारत-नेपाल संयुक्त ध्वज वाला बेज (कोट में पहने वाला बेज) भेँट किया गया। महेंद्र भाई जोशी जी व वैशाली जी पंड्या ने उनको महात्मा गांधी का चरखा और रक्तदान का प्रतीक चिन्ह बना था – स्मृति स्वरूप भेंट किया गया।


रेखा शर्मा ने अपने उद्बोधन में जो बात कही, वह दिल को छू गई –

“भारत-नेपाल केवल पड़ोसी देश नहीं हैं, हमारे परिवेश, परिधान, खानपान, भाषा व धर्म ग्रंथ सभी एक हैं जो हमे आपस मे जोड़ता हैं।”


उन्होंने भारतीय प्रतिनिधियों के प्रति विशेष सम्मान जताते हुए कहा कि जब भी भारत आऊँगी, तो हिमाचल प्रदेश और विशेषकर शिमला अवश्य जाऊँगी – क्योंकि "शिमला में हजारों नेपाली मूल के लोग वर्षों से सम्मान और आत्मीयता से जीवन यापन कर रहे हैं। इसके बाद नेपाल ब्लड डोनर असोसिएशन ने नेपाल में रक्तदान की स्थिति व रक्तदान को स्वेच्छिक रूप से कैसे बढ़ाया जाए पर चर्चा हुई। जिसमें  प्रत्येक देशों के प्रतिनिधियों ने अपने अपने विचार PPT के माध्यम से बडी स्क्रीन पर दिखा कर बताया। 2 बजे लंच के बाद विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों संबोधन हुआ। इसके बाद  5 बजे समापन हुआ...  कार्यक्रम के बाद .....

अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन – नेपाल 2024 में अनेक प्रभावशाली और समर्पित हस्तियों ने सहभागिता की, जिन्होंने रक्तदान को केवल सेवा नहीं बल्कि मानवता का महायज्ञ बताया। चिरीबाबु महर्जन, ललितपुर मेट्रो सिटी के मेयर, स्वास्थ्य एवं समाज सेवा में अत्यधिक सक्रिय हैं। उन्होंने युवाओं को रक्त सेवा से जोड़ने की खुली अपील की। सुनीता डंगोल, उप मेयर काठमांडू, ने महिलाओं की भागीदारी को रेखांकित करते हुए कहा कि रक्त सेवा में नारी शक्ति की भूमिका निर्णायक हो सकती है।


अध्यक्ष -BLODANसानू बाबू प्रजापति

एक प्रेरणास्पद और कर्मशील सामाजिक नेता हैं, जिन्होंने नेपाल में स्वैच्छिक रक्तदान आंदोलन को एक जन-आंदोलन का स्वरूप दिया है। उनके नेतृत्व में BLODAN ने न केवल नेपाल के विभिन्न जिलों में रक्तदान शिविरों का आयोजन किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय रक्तदाता संगठनों से सहयोग स्थापित कर एक वैश्विक संवाद का मंच भी तैयार किया। अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन के सफल आयोजन में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने भारत सहित अन्य देशों से आए प्रतिनिधियों का सशक्त स्वागत किया और भारत-नेपाल रक्त सेवा मैत्री को एक नई ऊंचाई दी।

सम्मेलन के दौरान उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि नेपाल में भी समर्पित युवा रक्तदाता समूह बड़ी संख्या में तैयार हो चुके हैं, जो नियमित रक्तदान को अपनी जीवनशैली का हिस्सा मानते हैं। उनका यह विश्वास है कि "हर घर से एक रक्तदाता" की भावना ही नेपाल को रक्त की कमी से मुक्त कर सकती है।उनकी नेतृत्व क्षमता, संगठनात्मक दृष्टिकोण और मानवतावादी सोच के कारण सानू बाबू प्रजापति आज नेपाल में रक्त सेवा के एक आदर्श प्रतीक बन चुके हैं।


 चिरीबाबु महर्जन, ललितपुर मेट्रो सिटी के मेयर

मदन कृष्ण श्रेष्ठ — नेपाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में सचिव पद पर आसीन एक अनुभवी, संवेदनशील और दूरदर्शी अधिकारी हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन – नेपाल 2024 में अपने गहन अनुभवों और प्रशासनिक दृष्टिकोण को साझा करते हुए यह स्पष्ट किया कि रक्तदान केवल मानवता का सेवा कार्य नहीं, बल्कि राष्ट्रिय स्वास्थ्य सुरक्षा का अभिन्न अंग है।

अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि नेपाल सरकार लगातार इस दिशा में कार्य कर रही है कि देश में ब्लड मैनेजमेंट को अधिक संगठित, डिजिटल और प्रभावी बनाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में प्रत्येक जिले में ब्लड बैंक की स्थापना और उसके साथ जुड़े आधुनिक कोल्ड स्टोरेज सिस्टम, ट्रांसपोर्टेशन चैनल और वॉलंटियर नेटवर्क को सशक्त किया जाएगा।

मदन कृष्ण श्रेष्ठ - स्वास्थ्य मंत्रालय सचिव, नेपाल

श्रेष्ठ जी ने यह भी माना कि भारत जैसे विशाल देश से नेपाल को तकनीकी सहयोग और प्रेरणा मिल रही है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात को स्वीकार किया कि भारत का थैलेसीमिया नियंत्रण मॉडल नेपाल के लिए अनुकरणीय है, और इसी मार्गदर्शन से नेपाल में भी नियमित व स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति जन जागरूकता बढ़ रही है। उनके विचारों ने सम्मेलन में दिशा और उद्देश्य दोनों को नई ऊर्जा दी।

डॉ. अब्देलमलेक सैयाह – अध्यक्ष,
अंतरराष्ट्रीय रक्तदाता महासंघ (IFBDO), अल्जीरिया

डॉ. अब्देलमलेक सैयाह, अल्जीरिया से पधारे International Federation of Blood Donor Organizations (IFBDO) के अध्यक्ष हैं। वे वैश्विक स्तर पर रक्तदान को एक मानवतावादी आंदोलन के रूप में स्थापित करने वाले प्रमुख चेहरों में से एक हैं। उनके अनुभव, नेतृत्व और दृष्टिकोण ने अनेक देशों को स्वैच्छिक रक्तदान की दिशा में संगठित कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन में उनकी उपस्थिति ने कार्यक्रम को एक वैश्विक आयाम प्रदान किया। अपने भाषण में उन्होंने भारत और नेपाल की सांस्कृतिक साझेदारी की सराहना की और दोनों देशों में रक्त सेवा के लिए कार्य कर रहे संगठनों के समर्पण की खुलकर प्रशंसा की।  उन्होंने नेपाल के युवाओं और सामाजिक संगठनों की ऊर्जा की सराहना करते हुए इसे मानवता की सेवा का आदर्श उदाहरण बताया। डॉ. अब्देल मलेक सैयाह का दृष्टिकोण और अनुभव, भारत-नेपाल समेत एशियाई देशों को एक सशक्त रक्तदाता समुदाय के निर्माण की दिशा में प्रेरित करता है।

जनक खड़का – अध्यक्ष, ब्लड डोनर्स एसोसिएशन काठमांडू, नेपाल 

Kathmandu Blood Donors Association के अध्यक्ष जनक खड़का को सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें भारत-नेपाल रक्त सेवा मैत्री को सशक्त बनाने, रक्तदान जैसे महान कार्य में सहयोग और समर्पण के लिए प्रदान किया गया।

सम्मान समारोह के दौरान:

  • उन्हें भारत की ओर से एक स्मृति चिन्ह, जिसमें भारत-नेपाल मैत्री, रक्त सेवा का प्रतीक चिह्न भेंट किया गया।

  • यह सम्मान अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन के मंच पर, भारत के प्रतिनिधिमंडल की ओर से प्रदान किया गया था। कार्यक्रम में उपस्थित अन्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के सामने यह सम्मान भारत और नेपाल के रक्तदाताओं के बीच भावनात्मक और सेवाभावी संबंध को दर्शाता है।

यह केवल एक व्यक्ति का सम्मान नहीं था, बल्कि उन सभी स्वयंसेवकों, रक्तदाताओं और संगठनों की भावना का आदर था जो सीमाओं से परे जाकर मानवता की सेवा करते हैं।

🌍 संयुक्त लोगो विमोचन:  मिशन रक्तक्रांति हिंदुस्तान एवं नेपाल

अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन के मंच से एक ऐतिहासिक क्षण ने जन्म लिया — जब “मिशन रक्तक्रांति हिंदुस्तान” और “मिशन रक्तक्रांति नेपाल” का संयुक्त लोगो विधिवत रूप से लॉन्च किया गया। यह सिर्फ एक प्रतीकचिह्न नहीं था, बल्कि दो मित्र राष्ट्रों की साझा सोच, साझा दर्द और साझा समाधान का प्रतीक बन गया।

 — जो यह दर्शाता है कि भले ही भौगोलिक सीमाएँ हों, पर सेवा और समर्पण की भावना एक है। मिशन रक्तक्रांति” की विचारधारा —अपने देश और समाज की नि:स्वार्थ सेवा, और प्रत्येक परिवार को रक्तदान के संकल्प से जोड़कर मानवता की सेवा की श्रृंखला को सशक्त बनाना। यह केवल रक्त देने का अभियान नहीं है, यह एक राष्ट्र और संस्कृति के प्रति उत्तरदायित्व निभाने की भावना है।

  • हर घर से एक रक्तदाता, हर दिल में सेवा का संकल्प।

  • रक्तदान को राष्ट्रसेवा का प्रतीक बनाना।

  • युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों को इस मिशन से जोड़कर इसे लोक आंदोलन बनाना।

इस ऐतिहासिक लोगो के लॉन्च के साथ ही यह संकल्प लिया गया कि भारत और नेपाल दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में हर गाँव, हर विद्यालय, हर युवा तक रक्तदान का संदेश पहुंचाएँगे — ताकि किसी भी ज़रूरतमंद को रक्त की कमी से अपनी जान न गंवानी पड़े।

अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन – भारत की प्रेरणा, नेपाल की नई दिशा

दूसरे दिन का सत्र सुबह 10 बजे प्रारंभ हुआ, कार्यक्रम का आरंभ एक गरिमामय सम्मान समारोह से हुआ। पहले इंटरनेशनल डेलिगेट को स्मृति चिन्ह व सर्टिफिकेट दे कर सम्मानित करते हुए उनके मानवता के लिए किए जा रहे कार्य से परिचित करवाया गया।

इसके बाद फेडरेशन ब्लड डोनर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल अपूर्व घोष (कोलकाता) मंच पर आए। उन्होंने स्वेच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने थैलेसीमिया से मुक्ति पाने के टिप्स प्रदान किये। उन्होंने —उन्होंने नेपाल को सुझाव दिया कि स्कूल-स्तर पर थैलेसीमिया जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया जाए, जिससे नई पीढ़ी इसका महत्व समझे।

इसके बाद मंच पर विशेष रूप से आमंत्रित भारत के वरिष्ठ रक्तदाता महेंद्र जोशी (गुजरात) को बुलाया गया। उन्होंने बड़े भावपूर्ण शब्दों में कहा—

"भारत में रक्तदान सेवा नहीं, संस्कार है। यह सिर्फ रक्त का दान नहीं, बल्कि मानवता को जीवित रखने की परंपरा है।"

महेंद्र भाई  जोशी ने बताया कि भारत में कॉलेजों, NSS, NCC, धार्मिक संस्थाओं, रेड क्रॉस, सामाजिक संगठनों और सरकारी प्रयासों से रक्तदान एक सामूहिक जनआंदोलन बन चुका है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नेपाल को भी इस दिशा में स्थायी रक्तदाता नेटवर्क बनाना चाहिए ताकि थैलेसीमिया और आकस्मिक रक्त की मांग को पूरा किया जा सके।

रक्तक्रान्ति के इस अंतरराष्ट्रीय महामंच से ‘मिशन रक्तक्रांति हिंदुस्तान’ और ‘मिशन रक्तक्रांति नेपाल’ के संयुक्त रूप से चलाए जा रहे महाअभियान का बैनर एवं लोगो औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया। यह केवल एक डिजाइन या प्रतीक नहीं था, बल्कि भारत और नेपाल के रक्तदाताओं की साझा सोच, सेवा-भाव और समर्पण का जीवंत प्रतीक था। उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने खड़े होकर तालियों की गूंज से इस ऐतिहासिक क्षण का स्वागत किया। यह पल भारत-नेपाल मैत्री के इतिहास में सेवा और समर्पण का एक स्वर्णिम अध्याय बन गया।

इस सत्र के दौरान इंटरनेट नेशनल फ़ेडरेशन ऑफ ब्लड डोनर ऑर्गनाइजेशन के प्रेसीडेंट व  बागमती नगर पालिका के मेयर द्वारा सभी प्रतिनिधियों को धन्यवाद सम्मानित किया गया। अंत में,  भारत के योगदान के लिए धन्यवाद दिया। मुख्य अतिथि ने अपने भाषण में कहा— “भारत ने रक्तदान के क्षेत्र में जो सामाजिक चेतना जागृत की है, वह नेपाल समेत पूरे दक्षिण एशिया के लिए प्रेरणा है। हम इस आदर्श को अपने देश में अपनाना चाहते हैं।” यह सम्मेलन केवल भाषणों और सम्मानों का मंच नहीं था, बल्कि एक संवेदनात्मक पुल था, जिसने भारत की सेवा भावना को नेपाल के हृदय तक पहुंचाया।

ललितपुर मार्केट, भाषा एवं संस्कृति विभाग परिसर
 सायं 5:00 बजे के बाद अंतरराष्ट्रीय रक्त सम्मेलन का प्रथम दिन के समापन के बाद, हम सभी लोगो को ललितपुर की बाजार की गलियों ले जाया गया । ललितपुर नेपाल की सांस्कृतिक आत्मा का जीवंत स्वरूप है। ललितपुर अपनी बारीक धातु शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है, विशेषकर हिंदू और बौद्ध देवताओं की हस्तनिर्मित मूर्तियों के लिए। यहां निर्मित प्रतिमाएं न केवल नेपाल, बल्कि संपूर्ण विश्व में निर्यात की जाती हैं – कुछ की कीमत लाखों में होती है, और हर एक में छिपी होती है शिल्पकार की श्रद्धा और युगों की परंपरा।

इस अद्वितीय मार्केट के पास ही स्थित है – नेपाल भाषा व संस्कृति विभाग का कार्यालय। उस दिन वहाँ एक विशेष प्रदर्शनी आयोजित की गई थी जिसमें नेपाल की विलुप्त होती ग्रामीण जीवनशैली और परंपराओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया। बड़े प्रांगण में गाँव की झलक मिलती थी – एक ओर महिलाएं पत्थर की ओखली पर गेहूँ और मक्का कूट रही थीं, तो दूसरी ओर पथरीले चूल्हों पर अनाज के दानों को भुना जा रहा था। भुने हुए अन्न को वहीं पत्थर के सील-बट्टे से पीसा जा रहा था, फिर उसी मिश्रण से तवा पर सेक कर स्थानीय व्यंजन बनाए जा रहे थे।

एक विशेष दृश्य ने सबका ध्यान खींचा – एक बड़ा मिट्टी का चूल्हा, जिस पर दो हांडी एक-दूसरे के ऊपर उलटी करके रखी गई थीं। नीचे की हांडी में तेज़ आंच पर पानी उबल रहा था, ऊपर की हांडी में एक पाइप लगी थी जिससे भाप उठकर एक बर्तन में संघनित होकर टपक रही थी। यह परंपरागत देशी शराब बनाने की प्रक्रिया थी, जो आज भी नेपाल के कई गाँवों में जीवित है। आयोजकों ने स्पष्ट किया कि यह विशेष रूप से विदेशी मेहमानों को नेपाल की सांस्कृतिक तकनीक से परिचित कराने हेतु प्रदर्शित किया गया है।

पास ही मिट्टी के बर्तनों, पुराने बुनाई यंत्रों, परंपरागत झूलों, और पहाड़ी संगीत वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी सजी थी। एक मंच पर नेपाली बालिकाएँ पारंपरिक वेशभूषा में लोकनृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। संगीत की लहरियों और तालियों की गूंज के बीच बागमती नगर परिषद के पार्षद राजू भंडारी और कलाकार संगीता शर्मा ने हमें भी मंच पर आमंत्रित किया – और हम भारतीय भी उस सांस्कृतिक झूम में एकाकार हो गए।


यह सांझ केवल एक कार्यक्रम नहीं था, यह उस लोक–जीवन की झलक थी जो समय की धूल में दबता जा रहा है – और आज हमें उसका अनुभव करवा जा रहा था।

सांस्कृतिक सुरों से सजी एक नेपाली शादी की रात


ललितपुर की सांस्कृतिक यात्रा के बाद जब हम थकान और संतोष के मिश्रित भाव लेकर वापसी की ओर बढ़ ही रहे थे, तभी काठमांडू ब्लड डोनर असोसिएशन के अध्यक्ष जनक खड़का जी ने कहा, “अब होटल नहीं जाना है, मेरी गाड़ी आ रही है। हम एक खास जगह चल रहे हैं।” हमने कारण पूछा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “आज मेरे साले की शादी है। आपको नेपाली शादी दिखानी है।”

हम थोड़े हिचकिचाए – “बिना बुलावे कैसे जाएं?” तो वे बोले, “मैं ही बुला रहा हूं, और आप मेरे मेहमान हैं।” यह निमंत्रण व केवल मेरी ओर से है बल्कि मेरे ससुलाल वालो की ओर से भी है। जिनकी शादी हो रही है वह नेपाल की आर्मी में कर्नल है।

हम भारत से आए चार लोग – हिमाचल, हरियाणा और गुजरात से – एक साथ बैठे, और नवविवाहित युगल के लिए मिलकर एक सुंदर उपहार लिया। एक तो यह औपचारिकता का प्रतीक नही, उससे कहीं अधिक यह हमारे हृदय की शुभकामना थी – उस अजनबी लेकिन अपनत्व भरे अवसर के लिए।

रात ढलते ही हम जनक खड़का, राजू भंडारी और अन्य स्थानीय साथियों के संग विवाह स्थल की ओर रवाना हुए। शादी एक भव्य होटल में थी, जिसकी सजावट बहुत सुंदर की गई थी। चारों ओर कारों की कतारें, सजी हुई लाइटिंग, और भीतर की चहल-पहल – सब कुछ किसी राजा की बारात जैसा भान करा रहा था।

मुख्य द्वार पर जनक जी के ससुराल पक्ष द्वारा हमारे स्वागत की तैयारी देखकर हम सचमुच अभिभूत हो उठे। फूलमालाएं, मुस्कराते चेहरे, और “भारत से हमारे मेहमान आए हैं” जैसी आत्मीय वाणी सुनकर ऐसा लगा मानो अपने घर के किसी समारोह में आ पहुँचे हों।

वर-वधु मंच पर विराजमान थे – पारंपरिक नेपाली वेशभूषा में, पूर्ण गरिमा और मुस्कान के साथ। हमने चारों ने मिलकर उन्हें उपहार अर्पित किया और सच्चे मन से आशीर्वाद दिया – कि उनका जीवन प्रेम, विश्वास और सेवा से परिपूर्ण हो।

उसके बाद का दृश्य पूर्णतः उमंग और उल्लास से भरा था। डीजे पर नेपाली गीत गूंज रहे थे, लोग थिरक रहे थे – भक्ति और संस्कृति से जुड़ी हुई दिन की यात्रा के बाद यह रात एक सामाजिक रंग-बिरंगी छटा की तरह थी। हमने खुलकर आनंद लिया, और नेपाल की उस सामाजिक गर्मजोशी को अनुभव किया जिसे शब्दों में बाँध पाना कठिन है।

रात करीब 10 बजे हम होटल लौटे। वहाँ जीवन खड़का जी हमारा इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने कहा – “15 मिनट में नहा-धोकर नीचे आ जाइए, एक चाय साथ में पीनी है।” इतना सुनकर हम सब अपने-अपने कमरों में गए, और थोड़े समय बाद नीचे वाले रेस्टोरेंट में पुनः मिले।

उस मुलाक़ात में दिन भर की घटनाओं, अनुभवों और भावनाओं पर चर्चा हुई – कभी हँसी, कभी विचार, कभी मौन। चाय का हर घूंट उस दिन के अनुभवों को जैसे आत्मा में उतार रहा था।

डोलेश्वर महादेव 
डोलेश्वर महादेव -नेपाल

पौराणिक मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव से क्षमायाचना हेतु काशी गए। लेकिन भगवान शिव, युद्ध से अप्रसन्न होकर उनसे दूर हो गए और उत्तर की ओर चल पड़े। अंततः वे केदारनाथ पहुंचे और वहाँ नंदी (बैल) का रूप धारण कर लिया। पांडव जब केदारनाथ पहुंचे, तो भीमसेन को संदेह हुआ कि इतनी ऊँचाई पर कोई बैल कैसे आ सकता है? उन्होंने बैल का पीछा किया और जैसे ही बैल एक पर्वत की ओर सिर मारकर उसमें प्रवेश करने लगा, भीमसेन ने उसकी पूंछ पकड़ ली।

उस पूंछ से शिव का पृष्ठ भाग केदारनाथ में रह गया और मुख भाग नेपाल के भक्तपुर के पास डोलेश्वर महादेव के रूप में प्रकट हुआ। यही कारण है कि डोलेश्वर को "केदारनाथ का मुख" माना जाता है।


डोलेश्वर महादेव मंदिर भक्तपुर के सुरम्य वातावरण में स्थित है। जैसे ही हम वहाँ पहुँचे, एक अलौकिक शांति ने हमें घेर लिया। यह स्थान घने पेड़ों से घिरा हुआ है और मंदिर तक पहुँचने का मार्ग पत्थरों से बनी पगडंडियों से होकर जाता है।

मंदिर का निर्माण शिखर शैली में हुआ है और छत पर स्वर्ण कलश सुशोभित है। गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है जो शिव के मुख स्वरूप का प्रतीक है। वहाँ धूप, बेलपत्र, जल और रुद्राभिषेक की सुगंध से वातावरण शिवमय हो गया था। मंदिर परिसर में एक शांत सरोवर भी है, जहाँ श्रद्धालु जलाभिषेक हेतु जल भरते हैं।

स्थानीय लोग प्रत्येक सोमवार यहाँ विशेष पूजा करते हैं और महाशिवरात्रि के दिन तो यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। नेपाल और भारत दोनों देशों के भक्त इस स्थल को समान श्रद्धा से पूजते हैं।

मंदिर के प्रवेश द्वार पर सबसे पहले ध्यान आकर्षित करती है एक विशाल नंदी की मूर्ति, जिसकी लंबाई लगभग 10 फीट और चौड़ाई 6 फीट से अधिक है। यह नंदी, पत्थर से तराशी गई है, पर इतनी जीवंत प्रतीत होती है कि लगता है जैसे किसी क्षण भगवान शिव का संकेत मिलते ही उठ खड़ी होगी।

इसके ठीक बगल में नाग देवता की एक अद्भुत प्रतिमा है — पाँच फनों वाला विशाल नाग, जो शिवलिंग की रक्षा करता प्रतीत होता है। नाग के फनों के पीछे सूर्य और चंद्र की कलाकृतियाँ भी उकेरी गई हैं।

मंदिर परिसर में ही एक बहुत बड़ा त्रिशूल, लगभग 25 फीट ऊँचा, धातु से बना हुआ है। उसके पास ही एक विशाल कमंडल स्थापित है, जो भगवान शिव की तपस्वी मुद्रा की याद दिलाता है। यह कमंडल, प्राकृतिक झरनों के समीप रखा गया है, जहाँ से निर्मल जल की धाराएँ निरंतर बहती रहती हैं।

सबसे विशेष बात यह थी कि वहाँ सैकड़ों शिवलिंग एक साथ स्थापित हैं — विभिन्न आकारों में, जिन पर श्रद्धालु जल चढ़ा रहे थे, बेलपत्र अर्पित कर रहे थे। एक भक्त ने हमें बताया कि यहाँ प्रतिदिन "ॐ नमः शिवाय" के जाप से यह स्थान गुंजायमान रहता है।

भारत-नेपाल की आध्यात्मिक एकता का प्रतीक

डोलेश्वर महादेव न केवल एक मंदिर है, बल्कि भारत और नेपाल की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। भारत के उत्तराखंड स्थित केदारनाथ और नेपाल के भक्तपुर स्थित डोलेश्वर — एक ही ईश्वर के दो रूप — इस बात का संकेत हैं कि सीमा चाहे कैसी भी हो, आस्था की कोई सीमा नहीं होती।

गुह्येश्वरी शक्तिपीठ – शक्ति का दिव्य आलोक 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को लेकर आकाश में घूम रहे थे, तब विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को खंडित किया था। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए। गुह्येश्वरी वह स्थान है 

मंदिर अत्यंत शांत, रहस्यमय और दिव्य ऊर्जा से भरा हुआ था। वहाँ मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अनेक छोटे-छोटे देवी-देवताओं के मंदिर हैं। गर्भगृह में प्रवेश केवल महिला श्रद्धालुओं के लिए अनुमत है, पुरुष केवल बाहर से दर्शन कर सकते हैं। इस परंपरा का पालन अत्यंत श्रद्धा से किया जाता है।

मंदिर की दीवारों पर प्राचीन तांबे की मूर्तियाँ, धार्मिक शिलालेख और अलौकिक चित्रकारी दिखाई देती है। एक ओर बागमती नदी के किनारे बैठे साधुओं का ध्यान, धूप की गंध और मंत्रोच्चारण — एक सजीव तपोभूमि का एहसास कराता है।

यह शक्तिपीठ, शिव के सान्निध्य में शक्ति की उपासना का जीवंत केंद्र है — और एक बार यहाँ आने वाला भक्त निश्चित ही एक गहन आध्यात्मिक शांति लेकर लौटता है।

✈️ विराम नहीं, एक नई शुरुआत – भारत वापसी का क्षण

डोलेश्वर महादेव और गुह्येश्वरी शक्तिपीठ जैसे दिव्य स्थलों के दर्शन और आत्मिक अनुभवों के बाद, हम सभी ने होटल में कुछ समय विश्राम किया। यह विश्राम केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी एक शांति का क्षण था।

कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात, हमें काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे तक विदा करने स्वयं जनक खड़का, राजू भंडारी, और जीवन खड़का जी आए। रास्ते भर कोई औपचारिकता नहीं, केवल मित्रता और अपनापन की बात होती रही। नेपाल की धरती से विदा लेना जितना सरल दिखता है, उतना ही कठिन है — क्योंकि वहाँ की माटी, महादेव और मानवता तीनों से एक अटूट रिश्ता बन चुका था। हमने एक-दूसरे को अंतिम बार हाथ जोड़कर प्रणाम किया, और सुरक्षा जांच की ओर बढ़ चले।

 भारत की धरती पर कदम रखा — एक अनजानी ऊर्जा, संतोष और गर्व का भाव मन में उमड़ आया। यह कोई आम यात्रा नहीं थी, यह एक आध्यात्मिक अनुभूति, सामाजिक समर्पण और मानवीय रिश्तों की तीर्थयात्रा  थी।

“जब हम किसी नई भूमि से लौटते हैं, तो कुछ न कुछ उस धरती का हिस्सा हमारे भीतर रह जाता है — और कुछ हमारा उस भूमि में समा जाता है।”



© 2025 Blood Donor Naresh Sharma – Sankalp Seva  |नेपाल यात्रा |
 श्रद्धा, सेवा और भाईचारे की आध्यात्मिक यात्रा। एक संकल्प, एक प्रकाश, अनंत जीवन।

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