दीपक नाईक: परिचय और प्रेरणा
इंदौर, मध्य प्रदेश :- स्वच्छ और सांस्कृतिक नगरी इंदौर, जो रानी अहिल्याबाई होल्कर की विरासत को संजोए हुए है, वहाँ एक ऐसे प्रेरणास्रोत समाजसेवी रहते हैं, जिनका मानवता के लिए किया गया कार्य एक प्रेरक उदाहरण है। जिनका नाम दीपक विभाकर नाईक है, जिन्हें लोग "रक्तदीप" के नाम से जानते हैं, मूल रूप से महू, मध्य प्रदेश के निवासी हैं, लेकिन वर्तमान में इंदौर के "विभाकर विहार", की सिद्धीपुरम कॉलोनी, पश्चिमी रिंग रोड में रह रहे हैं। वहाँ पर वर्षों से रक्तदान और समाजसेवा के क्षेत्र में निरंतर निस्वार्थ सेवाएं दे रहे हैं। पिछले 35 वर्षों से वे रक्तदान के माध्यम से कई जिंदगियाँ बचा चुके हैं। उनकी यह यात्रा महू की गलियों से एक साधारण फोन कॉल से शुरू हुई जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। आज तक के जीवन मे वह स्वयं 149 बार रक्तदान (whole blood + platelets) करने के साथ 45,000 यूनिट से अधिक रक्त - ब्लड बैंक के लिए रक्त एकत्रित कर चुके है। उनके कार्य की यह कहानी एक सामान्य युवक के असाधारण संकल्प की गाथा है।
मध्य प्रदेश के सबसे छोटे जिले महू में दीपक का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके माता-पिता मेहनती और ईमानदार छबि के व्यक्तित्व थे, जो दीपक को स्कूली शिक्षा के साथ निरन्तर दूसरों की मदद करने की शिक्षा भी निरन्तर देतें रहते थे। गुरुजनों के आशीर्वाद व माता-पिता की शिक्षाओं व परिवार के संस्कार से समाज में छोटी-छोटी जन सेवा के लिए निरंतर तत्पर रहते थे।
कहते हैं कि - एक दिन, 1990 के दशक में, एक परिचित का फोन आया। जिन्होंने बताया कि उनके दादा जी बीमार है और अस्पताल में दाखिल हैं। उनको रक्त की सख्त जरूरत है। बताया कि क्या तुम मदद कर सकते हो?" उस समय, महू में रक्तदान के बारे में जागरूकता न के बराबर थी। दीपक के लिए रक्तदान एक नया शब्द था। उनके मन में सवाल उठे :- "रक्तदान क्या है? इसको कैसे करते है?" लेकिन दूसरी ओर से घबराहट भरी आवाज ने सोचने का तनिक भी समय नहीं दिया। दीपक ने रक्तदान करने के लिये हाँ कर दिया। — और कहा कि घबराना नही मै रक्तदान करने जल्दी आ रहा हूँ।
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दीपक नाईक रक्तदान करते हुए |
सरकारी अस्पताल के छोटे से कमरे में चलने वाले बैंक मे पहली बार रक्तदान किया। सुई की मीठी चुभन और जीवन को बचाने की ख़ुशी के साथ ये एक जीवन का नया अनुभव था। उसके दो दिन बाद परिचित व्यक्ति ने फोन किया और धन्यवाद के साथ बहुत ही उदार हृदय से कहा आज आपकी वजह से हमारे घर के "बुजुर्ग की जान" बची है। उस बात से उसी पल, एक साधारण युवक के मन में असाधारण संकल्प जन्मा जिसने जीवन की दिशा ही बदल दी। उसके बाद रक्तदान शिविर लगाने का सिलसिला भी जारी किया।
समय के साथ, दीपक महू से इंदौर आए। इंदौर की जीवंतता और सामाजिक चेतना ने उनके संकल्प को और बल दिया। यहाँ, उन्होंने रक्तदान को एक मिशन बनाया, और वर्ष पूर्व एक ऐसी विचारधारा से जुड़े, जिसमे कई राज्य के रक्तदाता व समाजसेवा करने वाले लोग जुड़े हुुुए हैं। इस विचारधारा का नाम है "मिशन रक्तक्रान्ति हिंदुस्तान"। इस मिशन की टेग लाइन हैं - "हर-घर रक्तदाता - घर-घर रक्तदाता" जो सम्पूर्ण भारत के अलग अलग राज्य में रक्तदान शिविर लगाने के साथ युवाओ को रक्तदान व समाजसेवा के लिए प्रेरित करते हैं। इन सबसे जुड़ने का कारण वही है महू का वह फोन कॉल न केवल एक बुजुर्ग की जान बचा गया, बल्कि एक ऐसे आंदोलन की नीव रख गया, जो आज राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंज रहा है। दीपक का यह सफर साबित करता है कि साधारण शुरुआत भी असाधारण परिणाम दे सकती है।
"सेवा का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन यही सच्चा सुख देता है।"
दीपक का जीवन केवल रक्तदान तक सीमित नहीं है। उनका हर कार्य, हर विचार, और हर पहल एक समाज को जागृत करने का प्रयास है। नंगे पाँव चलने वाली बेटियों को चप्पल पहनाना, गरीब बच्चों को शिक्षा सामग्री पहुँचाना, और पीड़ितों के आंसू पोंछना—इन सब में उनका हृदय पूर्णतः समर्पित रहता है। वे मानते हैं कि सेवा का दीपक बुझना नहीं चाहिए; वह हर परिस्थिति में जलता रहना चाहिए—यही उनका ‘रक्तदीप’ बनना है।
उनका पहनावा, गाड़ी, हेलमेट, शर्ट की जेब—सब पर रक्तदान के संदेश अंकित रहते हैं। वे जहां भी जाते हैं, वहाँ रक्तदान का प्रचार अपने साथ ले जाते हैं। दीपक नाईक ने अपने जीवन को एक मिशन बना दिया है—मौन सेवा का, मानवता के उद्धार का।
इसलिए, जब समाज उन्हें ‘रक्तदीप’ कहता है, तो वह सिर्फ एक नाम नहीं ले रहा होता—वह एक परंपरा, एक संकल्प, और एक आदर्श को नमन कर रहा होता है।
जीवनसाथी : रक्तदान में साथी, सेवा में प्रेरणा
दीपक नाईक के जीवन में उनकी पत्नी अनन्या नाईक केवल एक जीवनसंगिनी नहीं, बल्कि समाजसेवा की यात्रा में उनकी सच्ची सहयोगी और प्रेरणास्रोत हैं। अनन्या पेशे से हिंदी और संस्कृत की शिक्षिका हैं, लेकिन उनके जीवन का असली अर्थ उन्होंने सेवा में पाया। उन्होंने न केवल दीपक के मिशन को अपनाया, बल्कि स्वयं भी अब तक 27 बार रक्तदान कर चुकी हैं —
कोरोना महामारी के भयावह समय में जब लोग घरों में कैद थे और अस्पतालों में रक्त की भारी कमी थी, उस समय भी लगातार संकट की परवाह किए बिना पूरे लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंद लोगो को समय पर रक्त उपलब्ध करवाया। पति- पत्नी दोनों ने एक साथ मिलकर रक्तदान भी किया। उनकी सोच स्पष्ट है — “सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।”
बेटी अनावि: रक्तदान की नई मशाल
दीपक नाईक की बेटी अनावि नाईक केवल एक संतान नहीं, बल्कि उनके संस्कारों की जीवित मिसाल हैं। जब एक बच्चा अपने पिता के पदचिन्हों पर न सिर्फ चलता है, बल्कि एक नई पीढ़ी को दिशा देने का माध्यम बनता है — तो वह एक मशाल बन जाता है। अनावि, जो अब युवावस्था में कदम रख चुकी हैं, ने अपने 18वें जन्मदिन पर पहला रक्तदान करके यह साबित कर दिया कि सेवा केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में होनी चाहिए।28 अक्टूबर 2022 को, अपने जन्मदिवस पर अनावि ने एक थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे के लिए पहला रक्तदान किया। यह केवल एक रक्तदान नहीं था, बल्कि संवेदना और संस्कारों की विजय थी। अब तक वे तीन बार रक्तदान कर चुकी हैं, और उन्होंने अपने पिता के मिशन को एक नई ऊर्जा भी दे रही है।
अनावि कहती हैं, “मेरे पापा ने मुझे सिखाया कि सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।” यह वाक्य केवल एक भाव नहीं, बल्कि उनके जीवन का मार्गदर्शक मंत्र है।
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जहाँ बेटी करती है रक्तदान, वहीं से समाज को नई दिशा मिलती है |
उनकी उपस्थिति यह सिखाती है कि यदि घर के बच्चे सेवा का मूल्य समझ जाएँ, तो समाज में परिवर्तन की लहर स्वतः उठ जाती है। अनावि वास्तव में रक्तदान की नई मशाल हैं — जो अपने उजाले से आने वाले कल को निरन्तर रोशन करती रहेगी।
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रक्तदाता परिवार – सेवा, समर्पण और संस्कार का प्रतीक |
"बेटियाँ जब सेवा का संकल्प लें, तो समाज का प्रत्येक कोना प्रकाशित हो उठता है।"
मिशन रक्तक्रांति हिंदुस्तान: युवाओं को रक्तदान से जोड़ना
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सम्मान उस संकल्प का जो वर्षों से निःस्वार्थ सेवा की लौ जलाता आया। |
इस मिशन के तहत रक्तदान शिविरों का आयोजन, थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए नियमित रक्त आपूर्ति, कॉलेजों और स्कूलों में प्रेरक सत्र, और सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जागरूकता जैसे प्रभावशाली कार्य किए जा रहे हैं। दीपक का कहना है — “रक्तदान मेरे लिए केवल चिकित्सा सेवा नहीं, बल्कि जीवन के 16 संस्कारों में एक 17वा संस्कार रक्तदान भी शामिल है।”
"मिशन रक्तक्रान्ति हिंदुस्तान एक नाम नहीं, एक विचारधारा है – जो रक्तदान को संस्कार बनाता है।"
अब यह मिशन केवल एक पहल नहीं, बल्कि एक चेतना, एक आंदोलन, और एक जन प्रेरणा बन चुका है। हमें यह मिशन सिखाता है कि यदि हर व्यक्ति वर्ष में दो बार रक्तदान करे, तो भारत कभी भी रक्त की कमी से नहीं होगी।
📖 ‘वक्त पर रक्त’: जीवन बचाने की एक किताब, एक संदेश
दीपक नाईक द्वारा लिखित पुस्तक ‘वक्त पर रक्त’ केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि एक प्रेरक आंदोलन की दस्तावेज़ी अभिव्यक्ति है। यह पुस्तक उस अनुभव और भावना से जन्मी है, जहाँ रक्तदान केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवनदायिनी संस्कृति बन जाती है।
इस पुस्तक में दीपक ने न केवल अपने 35 वर्षों के सेवायात्रा के अनुभव साझा किए हैं, बल्कि यह भी बताया है कि किस प्रकार वक्त पर दिया गया रक्त किसी की साँसों को नया जीवन दे सकता है। इसमें सच्ची घटनाओं, प्रेरक प्रसंगों और उन मासूमों की कहानियाँ हैं, जिनकी ज़िंदगी रक्तदान के एक निर्णय से बदल गई।
‘वक्त पर रक्त’ युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित और जागरूक करती है। यह बताती है कि एक छोटा-सा कदम किसी के जीवन का सबसे बड़ा सहारा बन सकता है। इस पुस्तक में उपयोग किए गए नारे, सन्देश और अनुभव, जनमानस को छू लेने वाले हैं।
प्रचार माध्यमों से जन-आंदोलन तक
रक्तदान केवल व्यक्तिगत कार्य नहीं हैं। ये एक जनसमर्पित कार्य है जिसके लिए लोगो को प्रेरित व प्रोत्साहित करना पड़ता है। उसके लिए जनआंदोलन के रूप में प्रचार माध्यमों की बड़ी भूमिका रहती है। दीपक “रक्तदीप” नाईक ने इस बात को भली-भांति समझा और आकाशवाणी, एफएम, यूट्यूब और दूरदर्शन जैसे प्रभावी प्लेटफॉर्म को अपने मिशन का सशक्त माध्यम बनाया।
आकाशवाणी और एफएम जैसे रेडियो माध्यमों के जरिए दीपक ने गांव-गांव, शहर-शहर तक यह संदेश पहुँचाया कि "रक्तदान न केवल जीवन रक्षक है, बल्कि यह समाजसेवा का सच्चा मार्ग भी है।" उनके सजीव इंटरव्यू, कॉल-इन प्रोग्राम्स और प्रेरक वक्तव्य हज़ारों श्रोताओं के दिलों तक पहुचते हैं। एफएम पर प्रसारित उनके अनुभवों ने विशेषकर युवाओं में जागरूकता और सहभागिता को प्रोत्साहित किया।
दूसरी ओर, यूट्यूब और दूरदर्शन जैसे दृश्य माध्यमों के जरिये उन्होंने डिजिटल युग में रक्तदान को एक मिशन का स्वरूप दिया। उनके यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध वीडियो, डॉक्यूमेंट्री सैकड़ो दर्शकों को प्रेरित कर रही हैं।
"जब सेवा का संकल्प सच्चा हो, तो हर माइक, हर कैमरा और हर स्क्रीन एक दीपक की लौ को रोशन करने का जरिया बन जाता है।"
🏠 रक्त वीथिका: सेवा, संस्कार और प्रकृति का संगम
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सेवा का संग्रहालय — जहाँ निःस्वार्थ भावनाएँ जीवित हैं। |
वीथिका की दीवारों पर देशभर में किए गए रक्तदानों की तस्वीरें, पुरस्कार, अख़बारों की कतरनें, पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख, और रक्तदाता साथियों की स्मृतियाँ बड़े ही सुंदर ढंग से सजाई गई हैं। यहाँ प्रेरणात्मक स्लोगन, रक्त बचाने की कहानियाँ, और सेवा यात्राओं की झलकियाँ प्रदर्शित हैं।
इस वीथिका को और भी जीवंत बनाते हैं वे वस्तुएँ, जो वेस्ट मटेरियल (waste material) से बनाई गई हैं। दीवार पर टंगे ‘रक्त क्रांति’ के प्रतीक चिह्न और बेंच के रूप में प्रयुक्त पुरानी चीज़ों से — हर एक वस्तु में नवाचार झलकता है।
घर के आंगन और छत पर उन्होंने अनेक प्रकार के औषधीय व सजावटी पौधे लगाए हैं — जो न केवल हरियाली को बढ़ावा देते हैं, बल्कि पर्यावरण के प्रति उनकी जागरूकता को भी दर्शाते हैं।
“सेवा जब जीवनशैली बन जाती है, तो घर भी तीर्थ बन जाता है।”
👣 चप्पलें: नन्हीं बेटियों को सम्मान का उपहार
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चप्पल नहीं, यह नन्हीं पगों को आत्मसम्मान का उपहार है। |
दीपक नाईक का सेवा-संकल्प केवल रक्तदान तक सीमित नहीं है। उनके दिल के सबसे कोमल कोनों में एक विशेष स्थान है — उन नन्हीं बेटियों के लिए, जो आर्थिक तंगी के कारण नंगे पाँव सड़क पर कही भी दिखाई देती है।
करीब 19 वर्ष पहले, अपनी बेटी अनावि के लिए पहली बार जूते खरीदने अपने परिवार के साथ दुकान पर गए। उन्होंने वहां पर जूतों की जगह एक चप्पल खरीदी जिसको पहन कर चलते समय चु चु की आवाज आती थी। दुकान से बाहर निकलते ही उनके पास एक माँ अपनी बच्ची के साथ आई। जिसने अपनी बेटी के पैरों की ओर दिखाते हुए बताया साहब मेरी बेटी के लिए भी ऐसी चप्पल ले कर दो। एक असहाय माँ और उसकी नन्ही बेटी एक उमीद भरी नज़रों देख रहे थे, दीपक जो अपनी बेटी के लिए महसूस कर रहे थे। उसी क्षण उन्होंने तय किया कि वे उनको तो दिलाएंगे ही पर आज से हर उस बेटी के पैरों को चप्पल पहनाएँगे, जो मजबूरी में नंगे पाँव चलती है।
तब से आज तक, वे जहाँ भी जाते हैं, उनके बैग में हमेशा कुछ चप्पलें होती हैं। गाँवों, मेलों, स्कूलों या रास्ते में – जब भी कोई नन्ही बेटी बिना चप्पल दिखती है, वे स्नेहपूर्वक उसे चप्पल पहनाते हैं। कई बार बेटियाँ आश्चर्य से कहती हैं – “अंकल, ये तो जादू है!” और वह जादू वास्तव में उनके प्रेम और सम्मान की भावना में निहित होता है।
यह सेवा केवल एक चप्पल देने का काम नहीं, बल्कि समाज को यह बताने का प्रयास है कि हर बेटी सम्मान की अधिकारी है। दीपक नाईक का यह मिशन बेटियों को आत्मसम्मान की राह पर अग्रसर करने का एक मौन, लेकिन अत्यंत प्रभावशाली आंदोलन है।
📚 Vidyamitra: बच्चों को शिक्षा का प्रकाश
दीपक नाईक द्वारा स्थापित ‘विद्यामित्र समूह’ एक ऐसा प्रयास है, जो जरूरतमंद बच्चों के भविष्य को सँवारने में जुटा है। इस समूह की शुरुआत तब हुई जब एक छोटे गाँव के स्कूल में बच्चों को कॉपी-पेन की कमी से जूझते देखा गया। दीपक जी ने अपने स्तर पर कुछ सामग्री भेंट की और यहीं से सेवा का यह बीज अंकुरित हुआ।
आज यह समूह कई जरूरतमंद बच्चों को किताबें, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी और पढ़ाई से जुड़ा सहयोग पहुँचा रहे है।
🎤 प्रेरक वक्ता:-भारत के कई राज्यों में सम्मान
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"यह पुरस्कार नहीं, समाज की कृतज्ञता है उस दीप के लिए, जो हर आँधी में जलता रहा। |
दीपक विभाकर नाईक केवल रक्तदाता नहीं, एक विचार हैं — एक ऐसी प्रेरणा, जो युवा पीढ़ी को समाजसेवा के लिए जाग्रत करती है। उनकी ओजस्वी वाणी और जीवन के अनुभवों से उपजा आत्मविश्वास, उन्हें एक प्रभावशाली प्रेरक वक्ता (Motivational Speaker) बनाता है। वे स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, एनएसएस कैंप, एनसीसी यूनिट्स, और सामाजिक मंचों पर विद्यार्थियों को रक्तदान, नशा-मुक्ति, और सेवा-धर्म की ओर प्रेरित करते हैं।
उनका भाषण केवल शब्द नहीं होते, बल्कि जीवन से निकली सच्ची घटनाओं की झलक होती है।
दीपक नाईक ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और दिल्ली जैसे अनेक राज्यों में जाकर अपने मिशन को फैलाया है। वे न केवल आमंत्रित वक्ता के रूप में कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। राष्ट्रीय दधीचि सम्मान, राष्ट्रीय मराठी गौरव, रक्तक्रांतिवीर सम्मान, और दर्जनों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा मिले सम्मान, उनके कार्यों की व्यापक मान्यता का प्रमाण हैं।
"रक्तदीप केवल एक नाम नहीं, बल्कि हर युवा के अंदर जलने वाली सेवा की ज्योति है।"
आज वे जहाँ भी जाते हैं, युवाओं में नई ऊर्जा, समाज के प्रति संवेदनशीलता, और रक्तदान जैसे जीवनदायी कार्यों में सक्रिय भागीदारी की लहर छा जाती है। वास्तव में, 'रक्तदीप' एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी चेतना हैं, जो हर दिल में सेवा और समर्पण की लौ जलाते हैं।
🌟 भविष्य का सपना
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"रक्तदान के पवित्र क्षण – सुई से नहीं, भावना से जुड़ी तस्वीर |
दीपक नाईक का सपना एक ऐसे भारत का है, जहाँ हर घर से एक नहीं, अनेक रक्तदाता हों। एक ऐसा राष्ट्र जहाँ त्याग, करुणा और सेवा केवल आदर्श नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा हों। वे मानते हैं कि जैसे हर नागरिक का कर्तव्य है राष्ट्र की रक्षा करना, वैसे ही हर सक्षम व्यक्ति का दायित्व है—किसी जरूरतमंद की साँसें बचाना।
❝ रक्तदान केवल एक स्वास्थ्य सेवा नहीं, यह एक संस्कार है। ❞
यह वाक्य दीपक के हृदय की गहराई से निकलता है। उनका मानना है कि जब एक युवा अपना पहला रक्तदान करता है, वह न केवल किसी की जान बचाता है, बल्कि अपने भीतर दया और समर्पण की चेतना को जगाता है।
भविष्य में वे हर गाँव, हर कस्बे, हर नगर में रक्तवीरों की टोली बनाना चाहते हैं—जो न केवल स्वयं रक्तदान करें, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
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एक ही फ़्रेम में चार जीवनरक्षक |
दीपक चाहते हैं कि पाठ्यक्रम में सेवा और मानवता का महत्व पढ़ाया जाए। युवाओं में यह भावना जागे कि वे केवल नौकरी या पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीने के लिए भी बने हैं।
यह केवल उनका सपना नहीं—यह हम सभी का उत्तरदायित्व है।
👣 अगली पीढ़ी के लिए संदेश
जिंदगी बहुत छोटी है दोस्त,
इसे बड़ी करने का
बस एक ही तरीका है –
मानव मन होने के नाते
कुछ तो ऐसी
निःस्वार्थ निशानी छोड़िए
कि लगे आप
उस जीवनपथ से गुज़रे हैं।
मौक़ा दीजिए अपने ख़ून को
किसी की रगों में बहने का,
ये लाजवाब तरीका है
कई जिस्मों में ज़िंदा रहने का।
“त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता, करुणा कभी कमजोर नहीं बनाती, और सेवा कभी छोटी नहीं होती।”
आइए, हम भी यह संकल्प लें कि हम 'रक्तदाता बनें भारत' के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएँ और अपने जीवन को सार्थक बनाएँ।

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