परिवार का इतिहास – एक सैन्य परंपरा की विरासत
2025 की एक सुबह, जब पूरा देश पहलगाम में हुए आतंकी हमले की पीड़ा से स्तब्ध था, एक असाधारण दृश्य भारतीय रक्षा मुख्यालय में देखने को मिला। प्रेस कॉन्फ्रेंस में, भारतीय सेना की ओर से आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई –
“ऑपरेशन सिंदूर” – की जानकारी दी जा रही थी।मंच पर खड़ी थीं – लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी।
उनकी वर्दी में चमकते सितारे और आँखों में आत्मविश्वास था, पर जो चीज़ सबसे अलग थी – वह थी उनकी मौजूदगी। क्योंकि पहली बार, किसी महिला अधिकारी ने भारत के सबसे हाई-प्रोफाइल आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन की आधिकारिक जानकारी दी थी।
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी का जन्म 1974 में गुजरात के वडोदरा शहर में हुआ। वे एक सैन्य परंपरा वाले परिवार से आती हैं जहाँ देशभक्ति और अनुशासन जीवन के मूल स्तंभ रहे हैं। उनके दादा भारतीय सेना में धार्मिक शिक्षक थे, जिनका कार्य सैनिकों को नैतिक और आध्यात्मिक दिशा देना था। उनके पिता, श्री ताज मोहम्मद कुरैशी, भारतीय सेना की EME (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स) कोर में सेवा दे चुके हैं और उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी भाग लिया था। परिवार में अनुशासन और शिक्षा का महत्व हमेशा सर्वोपरि रहा, जिसका प्रभाव उनके व्यक्तित्व में स्पष्ट रूप से झलकता है। सोफिया कुरैशी का बचपन सैन्य अनुशासन, सेवा भावना और संस्कारों के बीच बीता। उनके घर में सैन्य गाथाएँ, देश की सेवा और बलिदान की कहानियाँ नियमित चर्चा का विषय थीं। तब से ही उन्होंने सेना को अपना लक्ष्य बना लिया।
धर्म से ऊपर कर्तव्य:
उनका परिवार मानता था कि धर्म निजी हो सकता है, लेकिन देशसेवा एक साझा उत्तरदायित्व है। यह विचारधारा सोफिया के निर्णयों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
“भारत का हर बेटा और बेटी जब वर्दी पहनता है, तब उसका एकमात्र धर्म राष्ट्र होता है।” – सोफिया कुरैशी
वैवाहिक जीवन:
उनका विवाह एक भारतीय सैन्य अधिकारी से हुआ जो मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में कार्यरत हैं। इस संगति ने उन्हें न केवल प्रेरणा दी बल्कि पारिवारिक सहयोग भी जो उन्हें सैन्य जीवन में आगे बढ़ाने में सहायक बना।
प्रारंभिक जीवन:
सोफिया ने अपनी स्कूली शिक्षा केंद्रीय विद्यालय, ईएमई वडोदरा से प्राप्त की। केंद्रीय विद्यालय ईएमई वडोदरा से शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने अनुशासन, भाषण, एनसीसी और देशभक्ति को आत्मसात किया। उन्होंने महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में स्नातक और परास्नातक किया।
क्षेत्र | जानकारी |
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प्रारंभिक शिक्षा | केंद्रीय विद्यालय, वडोदरा |
स्नातक विषय | बायोकैमिस्ट्री |
विश्वविद्यालय | एमएस यूनिवर्सिटी, वडोदरा |
परास्नातक | बायोकैमिस्ट्री |
पीएचडी प्रवेश | छोड़ा (सेना में जाने के लिए) |
सेना में प्रवेश | शॉर्ट सर्विस कमीशन |
सैन्य प्रशिक्षण | OTA चेन्नई |
सेना में प्रवेश:
पीएचडी में दाख़िला लेने के बाद उन्होंने भारतीय सेना में महिलाओं के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन देखकर पीएचडी छोड़ सेना को चुना। उन्होंने ओटीए चेन्नई से कठिन प्रशिक्षण लिया, जहाँ अनुशासन, नेतृत्व, और वीरता को निखारा गया। 1999 में, लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने भारतीय सेना की सिग्नल कोर में कमीशन प्राप्त किया। उन्होंने विभिन्न सैन्य मुख्यालयों में संचार व्यवस्था और रणनीतिक संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
“महिला अधिकारी केवल प्रतीक नहीं, नेतृत्व की परिभाषा हैं।” – ले. कर्नल सोफिया कुरैशी
Force 18 सैन्य अभ्यास:
मार्च 2016 में, उन्होंने भारत में आयोजित बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास "Force 18" में भारतीय दल का नेतृत्व किया। यह अभ्यास ASEAN प्लस देशों के साथ हुआ था और वे इसमें भारतीय दल की एकमात्र महिला कमांडर थीं।
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन:
उन्होंने 2006 से 2012 तक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन (कांगो) में सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में सेवा दी। वहाँ उन्होंने शांति स्थापना, निरस्त्रीकरण और मानवीय सहायता कार्यों में योगदान दिया।
सैन्य तकनीकी विशेषज्ञता:
सोफिया भारतीय सेना की सिग्नल कोर की अधिकारी हैं। उन्होंने संचार प्रणाली संचालन, सामरिक तालमेल और प्रशिक्षण गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उपलब्धियाँ – पराक्रम की पदचिह्न
- Chief of Army Staff Plaque of Honour – Force 18 नेतृत्व के लिए
- Force Commander Commendation – संयुक्त राष्ट्र मिशन के दौरान
- Signal Officer-in-Chief Commendation – बाढ़ राहत कार्यों में योगदान के लिए
युवा प्रेरणा:
वे विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं, विशेषकर लड़कियों को सेना में शामिल होने और राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करती रही हैं।“यदि नीयत सच्ची हो, तो वर्दी केवल शरीर पर नहीं, आत्मा पर चढ़ती है।” – ले. कर्नल सोफिया कुरैशी
प्रेरणा का स्रोत:
लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने भारतीय सेना में अपने समर्पण, अनुशासन और नेतृत्व के माध्यम से लाखों युवाओं के लिए एक जीवंत प्रेरणा का कार्य किया है। वे भारतीय सेना में महिला सशक्तिकरण की अग्रदूत बनी हैं। उन्होंने Force 18 में भारतीय दल की कमान संभालकर यह संदेश दिया कि महिलाएँ भी रणनीतिक और सैन्य नेतृत्व में अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र मिशन में उनकी सेवा ने यह दिखाया कि भारतीय अधिकारी न केवल सीमाओं की रक्षा करते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति और मानवता के रक्षक भी हैं।
युवाओं को संदेश:
विभिन्न शैक्षणिक और सामाजिक मंचों पर उन्होंने युवाओं से राष्ट्रसेवा, अनुशासन और आत्मबल को जीवन का उद्देश्य बनाने का आह्वान किया है। वे कहती हैं:
“देश के लिए कुछ करने का सपना देखो – और फिर उसे साकार करने की शक्ति अपने भीतर खोजो।” – ले. कर्नल सोफिया कुरैशी
राष्ट्र की दृष्टि से योगदान:
उनके योगदान ने भारतीय सेना में लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया, और देश के लिए कार्य करने की भावना को नई दिशा दी।
यह कहानी सिर्फ कर्नल कुरैशी की नहीं — यह उस हर लड़की की है जो आज वर्दी पहनने का सपना देखती है। यह उस माँ की है जो अब अपनी बेटी को सैनिक बनने का आशीर्वाद देती है।
और यह उस भारत की है जो अब रणभूमि में बराबरी की आवाज़ सुनने को तैयार है।
भारत की कुछ और प्रेरक बेटियों की कहानी .......अगले भाग में ...पढ़ेंगे
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लेफ्टिनेंट जनरल हरीशा दुआ, जिन्होंने पहली बार सेना कोर की कमान संभाली।
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विंग कमांडर अभिनंदा, जिनकी पहचान बालाकोट एयरस्ट्राइक में उड़ाए गए लड़ाकू विमान से जुड़ी।
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लेफ्टिनेंट कर्नल शुभा भट, जो कश्मीर में सीमा चौकी की कमान संभालने वाली पहली महिला बनीं।
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कैप्टन दिव्या अजीत, जिन्होंने सुखोई-30 जैसे उन्नत लड़ाकू विमान में उड़ान भरकर इतिहास रचा।
ये महिलाएं कोट्स नहीं, कर्म का उदाहरण है— जिन्होंने यह दिखाया कि सैन्य नेतृत्व साहस, संकल्प और रणनीति पर टिका होता है।
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