TRP बनाम राष्ट्रहित

क्या भारत का मीडिया इस निर्देश के अनुकूल काम कर रहा है?

उत्तर:“पूर्ण रूप से नहीं”

भले ही Ministry of Defence ने स्पष्ट निर्देश दिए हों, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि अधिकांश प्रमुख मीडिया चैनल इनका पूरी तरह पालन नहीं करते।

✅ कुछ सकारात्मक उदाहरण:

  • NDTV, All India Radio, PIB जैसे संस्थान अक्सर official sources का ही इंतजार करते हैं।
  • युद्ध या आतंकी घटनाओं में कई बार "No Live Telecast" advisories मानी गई हैं।

❌ परन्तु बड़े स्तर पर समस्याएँ:

व्यवहार विवरण
Live Visuals कैमरा क्रू ऑपरेशन ज़ोन के पास से लाइव दिखाते हैं (जैसे: पुलवामा, उरी, बालाकोट के समय)।
Unverified Breaking News अक्सर WhatsApp या बिना पुष्टि की खबरें भी “exclusive” बता दी जाती हैं।
Race to TRP पहले दिखाने की होड़ में राष्ट्रीय सुरक्षा से बड़ा बना दिया जाता है “Speed of Breaking News” को।
पैनल डिस्कशन में रणनीति का अनुमान “एक्सपर्ट्स” के नाम पर ऐसे लोग बुलाए जाते हैं जो संवेदनशील जानकारियाँ खुलेआम अनुमान लगाकर बताते हैं।

⚖ उदाहरण जो सरकार के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध गए:

  1. बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019): स्ट्राइक के 2 घंटे के अंदर मीडिया में आंकड़े, स्थान, और रणनीति को लेकर अटकलें चलने लगीं।
  2. गालवान झड़प (2020): बिना आधिकारिक पुष्टि के पहले 24 घंटे में ही सैनिकों की संख्या, स्थान और हथियारों की जानकारी वायरल कर दी गई।
  3. पहलगाम हमला (2025): MOD प्रेस ब्रीफिंग से पहले ही “बड़ा बदला”, “ऑपरेशन सिंदूर शुरू” जैसे टाइटल चलने शुरू हो गए।

🚨 क्यों खतरनाक है ये रवैया?

  • आतंकी संगठनों को लाइव जानकारी मिलती है।
  • सैनिकों की जान जोखिम में पड़ती है।
  • ऑपरेशन की गोपनीयता और रणनीति बेकाबू हो सकती है।
  • दुश्मन देश इन प्रसारणों को निगरानी में रखते हैं।

🔍 निष्कर्ष:

सरकारी निर्देश स्पष्ट हैं, लेकिन मीडिया का पालन अधूरा है।

कुछ संस्थान जिम्मेदारी निभा रहे हैं, पर अधिकांश चैनलों का उद्देश्य राष्ट्रहित से पहले टीआरपी दिखता है।

ऐसे कंटेंट का बहिष्कार करें जो देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करता है।


© 2025 Naresh Sharma – Sankalp Seva | राष्ट्रहित सर्वोपरि



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