जीवनरक्षक -भूमिका

जीवनरक्षक पुस्तक की भूमिका

"जीवनरक्षक पुस्तक” केवल मेरी व्यक्तिगत सेवा यात्रा की कहानी मात्र नहीं है। यह एक हार्दिक आह्वान है—उन सभी लोगों के लिए, जिनके हृदय में अभी भी मानवता की लौ प्रज्वलित है, जिनमें दूसरों के प्रति संवेदना अभी भी जीवित है। यह उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं की संकीर्ण सीमाओं से निस्वार्थ जन-सेवा को, अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहते हैं। आगे चलकर इस पुस्तक के पृष्ठों में आपको केवल शुष्क आँकड़े और तथ्य नहीं मिलेंगे, बल्कि मानवीय भावनाएँ, कठिन संघर्ष और हृदयस्पर्शी अनुभव भी मिलेंगे। आप उन मासूम बच्चों की आँखों में कृतज्ञता की चमक देखेंगे जिन्हें समय पर रक्त मिला और जिन्होंने जीवन की एक नई सुबह देखी। आप उन पहाड़ी जीवन शैली के ग्रामीण समुदायों की गहरी कृतज्ञता को महसूस करेंगे जिनके लिए निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए गए और जिन्होंने बीमारियों से राहत पाई। आप उन मानसिक रूप से असहाय और पीड़ित व्यक्तियों की मौन पीड़ा को सुनेंगे जिन्हें हमने समाज में फिर से सम्मानजनक स्थान दिलाया। और इन सबसे बढ़कर—यह पुस्तक आपको अपने अंतर्मन में झाँकने और अपने जीवन के उद्देश्य पर गहराई से विचार करने के लिए प्रेरित करेगी। इसको लिखने का मेरा उद्देश्य केवल अपनी कहानी सुनाना नहीं है। मैं चाहता हूँ कि यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने जो दूसरों की सेवा करना चाहते हैं लेकिन कहीं न कहीं हिचकिचा रहे हैं। मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि सेवा के लिए किसी विशेष योग्यता या असाधारण क्षमता की आवश्यकता नहीं होती है। आपके पास जो कुछ भी है—आपका समय, आपका धन, आपके कौशल, आपकी करुणा—उसका उपयोग दूसरों की मदद के लिए किया जा सकता है। निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करना, वास्तव में, इस जीवन को सार्थक बनाने का एकमात्र उत्कृष्ट मार्ग और परमात्मा की सच्ची पूजा हैं।

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राष्ट्रप्रेम की भावना केवल राष्ट्रीय ध्वज फहराने या देशभक्ति के नारे लगाने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। राष्ट्रप्रेम का सच्चा स्वरूप तब प्रकट होता है जब आप बिना किसी अपेक्षा के किसी जरूरतमंद की सहायता करते हैं। कल्पना कीजिए, एक थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चा हर पंद्रह दिनों में रक्त की एक बूँद के लिए तरसता है, और एक अनजान स्वयंसेवी रक्तदाता चुपचाप अपना रक्त दान करके उसकी नाजुक साँसों को बचाता है। उस मौन कृत्य में, उस निस्वार्थ बलिदान में, राष्ट्रप्रेम की सच्ची और गहरी गूँज सुनाई देती है। प्रत्येक रक्तदाता अपने आप में एक अद्वितीय "जीवनरक्षक" होता है। वह उस बच्चे का न तो पिता है, न भाई है, न ही कोई मित्र, फिर भी वह अपने जीवन की अमूल्य बूँदें उस व्यक्ति के लिए अर्पित करता है जिसे उसने कभी देखा तक नहीं। यह भावना, यह त्याग, मानवता के उच्चतम आदर्शों का प्रतीक है। यह करुणा और सहानुभूति का वह अटूट बंधन है जो हमें एक दूसरे से जोड़ता है और हमें एक समाज के रूप में मजबूत बनाता है।

"जीवनरक्षक"—यह शब्द मेरे लिए केवल एक उपाधि नहीं है, बल्कि यह एक जिम्मेदारी है, एक पहचान है जो मेरे सेवा कार्यों के साथ गहराई से जुड़ गई है। जब मैंने पहली बार रक्तदान किया, तो मुझे यह एहसास हुआ कि मैं वास्तव में किसी के जीवन को बचाने में एक छोटी सी भूमिका निभा रहा हूँ। वह भावना इतनी शक्तिशाली और संतोषजनक थी कि उसने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी। रक्तदान के क्षेत्र में काम करते हुए, मैंने थैलेसीमिया और अन्य रक्त विकारों से पीड़ित बच्चों और वयस्कों की पीड़ा को करीब से देखा। हर पंद्रह दिन या महीने में उन्हें जीवित रहने के लिए रक्त की आवश्यकता होती है। जब रक्त उपलब्ध नहीं होता, तो उनके चेहरे पर निराशा और उनके परिवारों की चिंता देखना हृदयविदारक होता है।
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मैंने ऐसे कई मौके देखे जब समय पर रक्त मिलने से किसी की जान बच गई। मैंने उन माता-पिता की आँखों में कृतज्ञता के आँसू देखे जिन्होंने अपने बच्चों को मौत के मुँह से वापस आते देखा। उन अनुभवों ने मेरे विश्वास को और भी मजबूत कर दिया कि रक्तदान वास्तव में जीवन बचाने का एक महान कार्य है। याद रखें, हर छोटा सा प्रयास भी महत्वपूर्ण होता है। एक मुस्कान, एक दयालु शब्द, एक छोटी सी मदद—ये सब किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। आपको किसी बड़े संगठन से जुड़ने या कोई बड़ा दान करने की आवश्यकता नहीं है। आप अपने आसपास के लोगों की मदद करके भी सेवा का कार्य कर सकते हैं।

यह सिर्फ एक शुरुआत थी। धीरे-धीरे, मैंने महसूस किया कि सेवा के कई अलग-अलग रूप हो सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि हमेशा कोई बड़ा या असाधारण कार्य ही हो। छोटी-छोटी मदद भी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है। किसी भूखे को भोजन देना, किसी जरूरतमंद को कपड़े देना, किसी बीमार को अस्पताल पहुँचाना, या बस किसी अकेले व्यक्ति को थोड़ा सा समय देना—ये सभी सेवा के ही रूप हैं। समय के साथ धीरे-धीरे मेरे भीतर मानवता के प्र्ति एक गहरी आस्था और सेवा कि प्रतिबद्धता स्वेच्छिक रुप मे परिवर्तित हो गई। यह यात्रा आसान नहीं थी। मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लोगों की उदासीनता, संसाधनों की कमी और कभी-कभी निराशा भी महसूस हुई। लेकिन, हर बार जब मैंने किसी जरूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान देखी, या किसी की जान बचाने में सफलता मिली, तो मेरा सेवा-संकल्प और भी मजबूत हो गया।  मुझे यह विश्वास हो गया कि मेरा छोटा सा प्रयास भी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है, और यही भावना मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रही।

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मैं विशेष रूप से युवाओं से आह्वान करना चाहता हूँ कि वे सेवा को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाएं। युवा पीढ़ी में ऊर्जा, उत्साह और नए विचार होते हैं। यदि वे अपनी इस शक्ति का उपयोग समाज की सेवा के लिए करें, तो हम एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। जहाँ हर कोई एक दूसरे की परवाह करे, जहाँ कोई भी अकेला या बेसहारा महसूस न करे, जहाँ हर किसी को स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिले।

जय हिंद ।। जय जीवन रक्षक ।।

                                                                  BLOOD DONOR - NARESH SHARMA

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