शिमला की वादियों से एक प्रेरक कहानी

Sankalp Seva
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दीपक


दीपक शिमला के पास एक छोटे से गाँव का रहने वाला है। वहां की वादियाँ जितनी खूबसूरत हैं, जीवन उतना ही कठिन। सड़कें पक्की नहीं, ढलानें तीखी और मौसम अधिकतर सर्द। वहाँ साइकिल चलाना तो दूर, पैदल चलना भी किसी साधना से कम नहीं।लेकिन दीपक हर सुबह उठकर पैदल ही निकल पड़ता है — चिठ्ठियाँ पहुँचाने के लिए। उसका बैग सिर्फ कागजों से नहीं भरा होता, उसमें उम्मीदें होती हैं, अपनों की यादें होती हैं, और लोगों की ज़रूरतों की चुप पुकार होती है।

"लोग कहते थे – वो तो बस एक डाकिया है..."

दीपक का जीवन साधारण है, पर सोच असाधारण। शिमला के आसपास बहुत से अप्रवासी मजदूर रहते हैं – जो दूर-दराज़ से आकर निर्माण स्थलों पर काम करते हैं। उनके बच्चे शिक्षा से दूर, जीवन की बुनियादी ज़रूरतों से जूझते हैं।


दीपक ने चुपचाप उनकी ज़िंदगी में रौशनी लानी शुरू की:

  • हर सप्ताह बच्चों को मुफ्त पढ़ाता है
  • जरूरत की किताबें, पेंसिल, कॉपी, बैग देता है
  • सर्दियों में गर्म कपड़े, टोपी, स्वेटर जुटाता है

एक दिन जब मंच से उसका नाम पुकारा गया...

गाँव के मंदिर में एक सामाजिक समारोह आयोजित हुआ। मंच पर कई प्रतिष्ठित लोग बैठे थे — लेकिन जब आयोजक ने कहा, "आज हम सम्मानित करते हैं दीपक कुमार", तो सब चौंक गए।

"ये? वो डाकिया?" किसी ने तिरछी नजरों से देखा, लेकिन जब उसके कार्य गिनवाए गए तो सभी भावुक हो गए:

  • अप्रवासी मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी
  • ठंड में गर्म वस्त्र जुटाना
  • स्थानीय युवाओं को नशा छोड़ने की प्रेरणा देना
  • स्वास्थ्य जागरूकता फैलाना

दीपक मुस्कराया और बोला:

"ज़रूरी नहीं कि सभी लोग हमें समझ पाएं...
तराजू वज़न तो बता सकता है, लेकिन किसी की अच्छाई या नीयत की गुणवत्ता नहीं नाप सकता।
मैंने कभी दिखावे के लिए कुछ नहीं किया। मैं बस वहाँ पहुँचता हूँ जहाँ जरूरत होती है।"

आज भी दीपक वही है... पर समाज की नजरें बदल गई हैं।

वो अब भी चिट्ठियाँ पैदल लेकर जाता है। रास्ते कठिन हैं, बर्फ जमती है, लेकिन उसके कदमों में संकल्प है। अब बच्चे उसे देखकर दौड़ते हैं, बुजुर्ग दुआ देते हैं, और युवा उसे 'गुरु' कहते हैं।

"हर समाज में कई दीपक होते हैं — जिन्हें कोई पहचान नहीं देता, लेकिन जो चुपचाप समाज को रौशन करते रहते हैं।"


"जहाँ दीप जलता है, वहीं से अंधकार भागता है!"

Where Light Walks Silently — The Story of Deepak

Deepak is a humble postman from a small, hilly village near Shimla. The roads are rough, the slopes are steep, and the cold is relentless. Yet, every morning, he walks miles with a bag full of letters — not just paper, but emotions, hopes, and unspoken needs.

People once said, “He’s just a postman.” But Deepak was quietly delivering something more — light.

Among the migrant laborers working around Shimla, their children often lacked education, books, and warm clothes. Deepak noticed... and acted.

  • Every weekend, he teaches poor children for free.
  • He donates school bags, notebooks, pencils.
  • In winters, he collects sweaters, caps, and warm clothes.

One day, during a village event, his name was announced for public honor. People were surprised — “Deepak? That postman?” But as his efforts were shared, eyes filled with tears.

"A scale can measure weight, but not the value of intention. I just go where I’m needed."

He still walks the same frozen roads, still carries letters. But now, children run to him, elders bless him, and youth call him “teacher.”

In every society, there are unseen lights like Deepak — unrecognized, yet quietly illuminating the world.

 © 2025 Naresh Sharma – Sankalp Seva एक संकल्प, एक प्रकाश, अनंत जीवन।

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