🌅 "वो नहीं जानती कि मैं कौन हूँ... लेकिन मैं तो जानता हूँ!"
सवेरे की ताजगी और सूरज की पहली किरणें ज़मीन को छू रही थीं। तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने एक पुराने मोहल्ले के डॉक्टर के घर की घंटी बजा दी।
डॉक्टर की पत्नी दरवाजा खोलते हुए बोलीं – “अरे रघुवीर दादा! इतनी सुबह कैसे? सब कुशल तो है?”
वृद्ध बोले – “डॉक्टर साहब से अंगूठे के टांके कटवाने आया हूँ। 8:30 बजे मुझे कहीं पहुँचना है, इसलिए जल्दी आया हूँ।”
डॉक्टर साहब बाहर आए और बोले – “कोई बात नहीं दादा, आइए बैठिए।” उन्होंने टांके हटाए, पट्टी लगाई और मुस्कराकर बोले – “घाव ठीक हो गया है, अब चिंता की कोई बात नहीं।”
डॉक्टर ने पूछा – “आपको कहाँ जाना है दादा, अगर जल्दी है तो मैं छोड़ देता हूँ।”
दादा बोले – “नहीं डॉक्टर साहब, पहले घर जाऊँगा, नाश्ता बनाऊँगा, फिर निकलूँगा। मुझे नर्सिंग होम पहुँचना होता है, ठीक 9 बजे।”
डॉक्टर चौंके – “आपकी पत्नी वहाँ है ना? उन्हें क्या हुआ है?”
वृद्ध ने शांत स्वर में कहा – “उन्हें अल्ज़ाइमर हो गया है। पिछले पाँच साल से वहाँ हैं। अब मुझे पहचानती भी नहीं हैं।”
डॉक्टर और उनकी पत्नी की आँखें भर आईं। डॉक्टर ने पूछा – “जब वो आपको पहचानती नहीं, फिर भी आप हर दिन जाते हैं?”
दादा की आँखों से आँसू छलक पड़े। उन्होंने मुस्कराकर कहा –
“वो नहीं जानती कि मैं कौन हूँ... लेकिन मैं तो जानता हूँ कि वो कौन है!”
यह वाक्य जैसे कमरे की दीवारों से टकराकर दिलों तक उतर गया। डॉक्टर और उनकी पत्नी की आँखें भर आईं। दादा की सादगी और निष्ठा ने हर श्रोता को झकझोर दिया।
डॉक्टर की पत्नी ने पूछा – “दादा, आप कभी थकते नहीं? ऊबते नहीं?”
दादा बोले – “उसने मेरी पूरी जिंदगी सेवा की है, अब जब वो असहाय है, तो मेरा धर्म है उसकी सेवा करना। वो मुझे देखती है, भले पहचानती नहीं, लेकिन जब मैं उसके पास बैठता हूँ तो मुझमें नई शक्ति आ जाती है।”
“अगर वो न होती तो मैं भी शायद टूट जाता। लेकिन अब हर सुबह उठने की वजह है – उससे मिलने जाना, उसे अपने हाथों से नाश्ता कराना।”
यह प्रेम था – न दिखावे वाला, न दिखाया जाने वाला। यह प्रेम था – आत्मा से आत्मा का संबंध।
❤️ जीवन का संदेश:
“अपने वो नहीं जो तस्वीरों में साथ दिखें,
अपने वो हैं जो तकलीफ में साथ निभाएं।”
जब संबंध केवल सुविधा तक सीमित हो जाते हैं, तब परिवार टूटने लगता है। लेकिन जहाँ सेवा, त्याग और सच्चा प्रेम होता है — वहाँ जीवन महकता है।
यह कहानी सिर्फ रघुवीर दादा की नहीं — यह हर उस व्यक्ति की है, जो बिना किसी अपेक्षा के निभा रहा है। ऐसे लोग दुनिया को सुंदर बनाते हैं।
यदि आपके घर में माता-पिता हैं, जीवनसाथी है — तो उन्हें समय दीजिए। उन्हें पहचानिए... क्योंकि एक दिन उन्हें हमारी जरूरत हो सकती है — जैसे कभी हमें उनकी थी।
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