भगवान बुद्ध का जीवन चरित्र
भगवान गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनके पिता राजा शुद्धोधन शाक्य वंश के शासक थे, और माता माया देवी थीं। जन्म के समय एक भविष्यवाणी हुई कि सिद्धार्थ (बुद्ध का बचपन का नाम) या तो एक महान राजा बनेंगे या फिर एक महान संत।सि द्धार्थ का पालन-पोषण राजसी वैभव में हुआ। उन्हें युद्धकला, राजनीति, और दर्शन की शिक्षा दी गई। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह यशोधरा से हुआ, जिनसे उन्हें एक पुत्र राहुल हुआ।
सिद्धार्थ ने जब जीवन के चार सत्य—बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु और एक संन्यासी—देखे, तो उन्होंने संसारिक सुखों को त्यागने का निर्णय लिया। 29 वर्ष की आयु में उन्होंने गृहत्याग किया।
उन्होंने कठोर तपस्या की, लेकिन समाधान न मिलने पर मध्यम मार्ग अपनाया। बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए वैशाख पूर्णिमा को उन्हें ज्ञान (बुद्धत्व) की प्राप्ति हुई।
महापरिनिर्वाण
बुद्ध ने अहिंसा, करुणा और सत्य का संदेश दिया। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
बुद्ध की शिक्षाएँ और उनका आधुनिक प्रभाव
प्रेम, करुणा, दया और समर्पण
- प्रेम: जीवन का आधार। आज समाज में इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
- करुणा: दूसरों की पीड़ा को समझना और सहायता करना।
- दया: समाज में सहिष्णुता लाने का मार्ग।
- समर्पण: आत्म-सुधार और जनकल्याण के लिए जरूरी।
बौद्ध धर्म का वैश्विक विस्तार
आज बौद्ध धर्म 200+ देशों में फैला है। प्रमुख देश: चीन, जापान, थाईलैंड, श्रीलंका, भारत आदि।
यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, अनुयायी: 1.73 से 2 अरब तक।
बुद्ध के मुख्य उपदेश – आधुनिक दृष्टिकोण
बुद्ध का शिक्षण जीवन के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित है।
अष्टांगिक मार्ग:
- सम्यक दृष्टि: सत्य को समझना
- सम्यक संकल्प: करुणा व अहिंसा
- सम्यक वाणी: सत्य वचनों का प्रयोग
- सम्यक कर्म: नैतिक जीवन
- सम्यक आजीविका: ईमानदार आजीविका
- सम्यक प्रयास: बुराइयों को त्यागना
- सम्यक स्मृति: जागरूकता बनाए रखना
- सम्यक समाधि: ध्यान और आत्मसंयम
बुद्ध की ये शिक्षाएं आज भी व्यक्तिगत विकास, सामाजिक सुधार और वैश्विक शांति के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
त्याग और आत्मज्ञान की प्रेरणा
भगवान बुद्ध के संन्यास लेने के बाद उनकी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल का जीवन पूरी तरह बदल गया। यह एक गहरी और प्रेरणादायक कथा है, जो त्याग, आत्मज्ञान और धैर्य का प्रतीक है।
यशोधरा का जीवन
जब सिद्धार्थ (बुद्ध) ने राजमहल छोड़कर संन्यास लिया, तब यशोधरा और उनके पुत्र राहुल अकेले रह गए। यशोधरा को इस बात का आभास था कि सिद्धार्थ सांसारिक मोह से मुक्त होकर सत्य की खोज में निकल चुके हैं।
उन्होंने अपने पति के मार्ग को समझते हुए राजसी वैभव का त्याग कर दिया। वे साध्वी बन गईं—महल के वस्त्रों को छोड़कर पीले वस्त्र पहनने लगीं और साधारण जीवन जीने लगीं। उन्होंने दिन में केवल एक बार भोजन करना शुरू किया और अपने पुत्र राहुल को भी इसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
राहुल का जन्म तब हुआ जब बुद्ध संन्यास लेने का निर्णय ले चुके थे। जब बुद्ध ने घर छोड़ा, तब राहुल बहुत छोटे थे। यशोधरा ने उन्हें बुद्ध के विचारों और शिक्षाओं से परिचित कराया।
जब बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद कपिलवस्तु लौटे, तब यशोधरा ने राहुल को उनके पास भेजा। राहुल ने बुद्ध से कहा:
"हे भगवन, मुझे मेरी विरासत दीजिए!"
बुद्ध ने राहुल को सच्ची विरासत दी—उन्होंने उसे संन्यास ग्रहण कराया और भिक्षु बना दिया। राहुल ने बुद्ध के मार्ग पर चलते हुए ध्यान और आत्मज्ञान की साधना की।
यशोधरा और राहुल का संन्यास
बुद्ध के मार्ग को अपनाते हुए, यशोधरा ने भी भिक्षुणी का जीवन स्वीकार कर लिया। उन्होंने बुद्ध की शिष्या बनकर उनके उपदेशों को आत्मसात किया। बाद में उन्हें गौतमी नाम से जाना गया।
राहुल भी बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में शामिल हुए और उन्होंने गहन ध्यान व आत्मज्ञान की साधना की।
यशोधरा और राहुल की कहानी त्याग, धैर्य और आत्मज्ञान का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा ज्ञान सांसारिक मोह से मुक्त होकर ही प्राप्त किया जा सकता है।
यह कथा आज भी हमें प्रेरित करती है कि धैर्य और आत्मसंयम से हम जीवन में उच्चतम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं।
© 2025 Naresh Sharma – Sankalp Seva | त्याग, धैर्य और करुणा ही बुद्धत्व की नींव हैं।
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