भारत माँ की पुकार
(राष्ट्रभक्ति, समाजसेवा और समर्पण से ओतप्रोत कविता)
मैं तुझमें ही हूँ भारत माँ,
तेरे चरणों की धूल हूँ मैं।
तेरे वीरों के रक्त से रँगा,
उस तिरंगे की शान हूँ मैं।
न झुकने दूँगा ये माथा तेरा,
न मुरझाने दूँगा मुस्कान।
जहाँ ज़रूरत हो मानवता की,
वहीं बनूँगा सेवा का प्राण।
कभी थैलेसीमिया की पीड़ा में,
कभी अनाथ की सिसकी में,
कभी बूँद-बूँद रक्त बनकर,
बहूँगा तुझमें ही हर दिशा में।
तेरे गाँवों की मिट्टी में,
मैं हर जीवन का दीप हूँ।
तेरे सैनिकों की साँसों में,
मैं अदृश्य पर जीवित गीत हूँ।
जो शोषित हैं, जो पीड़ित हैं,
वही हैं मेरी जात मेरी।
ना कोई भेद, न कोई सीमाएँ,
भारत माँ — तू ही मेरी सीमा रही।
हर बूँद मेरा तुझ पर अर्पित,
हर साँस तुझको समर्पित है।
न थकूँगा, न झुकूँगा,
जब तक सेवा जीवित है।
न पूछो किस दल से हूँ मैं,
न पूछो मेरा धर्म कौन सा है।
मैं भारतवासी हूँ — यही पहचान,
सेवा मेरा कर्म, तिरंगा मेरा गान।
जय भारत माँ! तू बुला रही,
तेरी हर पुकार पे जाऊँगा।
जहाँ ज़रूरत हो एक दीप की,
वहाँ खुद को जलाऊँगा।
जय हिन्द! जय जीवनरक्षक!
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