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भारत और तुर्की सेब व्यापार: सहयोग, बहिष्कार और कृषि पर प्रभाव

तुर्की द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता देने और भारत विरोधी नीति अपनाने के बाद हिमाचल प्रदेश में आक्रोश फैल गया है। यहां के बागवानों और सामाजिक संगठनों ने तुर्की से आयातित सेब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि जो देश भारत के विरुद्ध कार्य करता है, उससे व्यापार राष्ट्रहित के खिलाफ है। हिमाचल के किसान तुर्की से सस्ता सेब मंगवाने से स्थानीय बागवानी उद्योग को नुकसान की बात कह रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रहित और आत्मनिर्भर भारत की भावना को ध्यान में रखते हुए तुर्की से सेब आयात पर रोक की मांग तेज़ हो गई है।

भारत में सेब केवल स्वादिष्ट फल नहीं, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका और देश की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में सेब उत्पादन व्यापक रूप से होता है। समय के साथ नई किस्मों और तकनीकी उन्नति की आवश्यकता को देखते हुए भारत ने कई वर्षों तक तुर्की से सेब के फल और उनके उन्नत किस्मों के पौधे आयात किए। लेकिन हाल ही में तुर्की की ओर से भारत विरोधी बयानों और कुछ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत-विरोधी रुख ने देश की जनता और किसानों की भावनाओं को आहत किया हैं। भारत में सेब की खेती का इतिहास पुराना और समृद्ध है। यह फल देश के पहाड़ी राज्यों की आर्थिकी और बागवानी विकास का एक प्रमुख आधार है। प्रमुख रूप से सेब की खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, और उत्तराखंड में होती है, जहाँ जलवायु और मिट्टी इस फसल के अनुकूल हैं। हाल के वर्षों में नागालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, और मेघालय जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी सेब की खेती में वृद्धि देखी गई है, जो देश के नए सेब बेल्ट के रूप में उभर रहे हैं।

तुर्की से भारत को सेब का आयात

तुर्की का अनातोलिया क्षेत्र सेब उत्पादन के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ की ठंडी और शुष्क जलवायु उच्च गुणवत्ता, रंग, और स्वाद वाले सेब के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है। भारत ने बीते वर्षों में इसी क्षेत्र से विभिन्न किस्मों के सेब आयात किए, जिनमें प्रमुख हैं:

  • रेड डिलीशियस
  • गोल्डन डिलीशियस
  • गाला सेब

ये किस्में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ लंबी दूरी तक परिवहन योग्य भी होती हैं।

सेब के पौधे आयात

भारत में सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बीते वर्षों में तुर्की से उन्नत किस्मों के सेब के पौधे भी आयात किए गए। इन पौधों को विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में लगाया गया, जहाँ की जलवायु इनके लिए उपयुक्त है।

तुर्की से आयातित पौधे अधिक उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधक गुणों और कम समय में फल देने की विशेषता के कारण लोकप्रिय हुए। भारत तुर्की से लगभग ₹1,000 से ₹1,200 करोड़ रुपये के सेब और पौधे प्रति वर्ष आयात करता था, जिससे विदेशी निर्भरता भी बनी रही।

व्यापारिक बहिष्कार और उसका प्रभाव

भारत और तुर्की के संबंधों में तनाव उस समय तेज़ हो गया जब तुर्की ने खुले तौर पर पाकिस्तान को सैन्य सहयोग और समर्थन देना शुरू किया। यह कदम भारत की संप्रभुता और कूटनीति के खिलाफ माना गया। इसके विरोध में भारतीय समाज और व्यापारिक वर्ग ने तुर्की के आयातित उत्पादों के व्यापक बहिष्कार का निर्णय लिया।

इस राष्ट्रवादी भावना की शुरुआत साहिबाबाद फल मंडी से हुई, जो उत्तर भारत की सबसे बड़ी फल मंडियों में से एक है। यहाँ के व्यापारियों ने एकमत होकर तुर्की से सेब आयात पूरी तरह बंद कर दिया। यह निर्णय केवल एक आर्थिक कदम नहीं हैं, बल्कि यह देशहित में एकजुटता का प्रतीक भी हैं।

केवल फल मंडियाँ ही नहीं, बल्कि मार्बल, ग्रेनाइट और टाइल्स उद्योग, जो पहले तुर्की से बड़े पैमाने पर आयात करते थे, उन्होंने भी आदेश निरस्त कर दिए। इसके अलावा, कई टेक्नोलॉजी कंपनियों और ऑनलाइन ब्रांड्स ने तुर्की प्रोडक्ट्स से दूरी बनाना शुरू किया।

यह बहिष्कार पर्यटन क्षेत्र तक भी पहुँचा। देश की कई ट्रैवल कंपनियों ने तुर्की की फ्लाइट और पैकेज बुकिंग में कटौती कर दी। इससे तुर्की पर्यटन उद्योग को भी नुकसान पहुँचा।

देशभक्ति से प्रेरित-बहिष्कार

तुर्की से सेब और पौधों के आयात पर प्रतिबंध केवल एक व्यापारिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रभक्ति से प्रेरित जनचेतना पाकिस्तान जैसे आतंकवाद समर्थक देशों का समर्थन करते हैं और भारत के खिलाफ युद्ध में ड्रोन व हथियार मुहैया कराते हैं, तब यह हर भारतीय का कर्तव्य बन जाता है कि वह ऐसे राष्ट्रों से आर्थिक संबंध समाप्त करे।

भारत के व्यापारी वर्ग ने साहसिक कदम उठाकर यह सिद्ध किया है कि व्यापार केवल लाभ तक सीमित नहीं, बल्कि वह राष्ट्रनीति और राष्ट्रप्रेम से भी जुड़ा होता है। ‘#BoycottTurkey’ आंदोलन इसी सोच का परिचायक है। इससे स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, और विदेशी निर्भरता कम होगी।

यह सिर्फ एक फल का नहीं, बल्कि राष्ट्र की अस्मिता का सवाल है — और जब बात भारत के सम्मान की हो, तो पूरा देश एक स्वर में बोलता है: वंदे मातरम्!


Summary for Global Readers (2025)

India and Turkey have shared trade ties in various sectors, including agriculture. Turkey has been a notable exporter of high-quality apples and saplings to India, particularly to the apple-growing states of Himachal Pradesh, Jammu & Kashmir, and Uttarakhand. Turkish apple varieties like Red Delicious, Golden Delicious, and Gala were in demand for their flavor and yield potential.

However, recent geopolitical tensions—especially Turkey's military support to Pakistan—have led Indian traders and agricultural communities to boycott Turkish products, including apples and plant imports. Markets like Sahibabad (Ghaziabad) and various trade bodies have suspended imports, impacting Turkey’s fruit export earnings.

This boycott, while a response to foreign policy issues, also opens a new chapter for India’s domestic apple industry. It presents an opportunity for Indian farmers to adopt improved techniques and reduce dependency on foreign imports. The shift reflects how national sentiment can influence trade and encourages self-reliance in agricultural development.

🇮🇳— Naresh Sharma, Sankalp Seva (2025)
🚫 समर्थन नहीं, स्वाभिमान चाहिए — #BoycottTurkey

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