श्री पिंगली वैंकय्या जी

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राष्ट्र ध्वज साधक – श्री पिंगली वैंकय्या 


1. श्री पिंगली वैंकय्या का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

पिंगली वैंकय्या का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के भटलापेनुमारु गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हनुमंतरायुडु और माता का नाम वेंकटरत्नम्मा था। प्रारंभ से ही वे विद्या, विविध भाषाओं और विज्ञान में रुचि रखने वाले विद्यार्थी रहे। वैंकय्या जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास (अब चेन्नई) में प्राप्त की और इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड के प्रतिष्ठित कैंब्रिज विश्वविद्यालय भी गए, जहाँ उन्होंने भूविज्ञान, कृषि, शिक्षा और भाषाओं पर गंभीर अध्ययन किया। उन्हें उर्दू, जापानी, अंग्रेजी समेत कई भाषाओं का गहन ज्ञान था।
बचपन में ही उनमें देशभक्ति, तेजस्विता और शोधात्मक प्रवृत्ति पनप गई थी, जिसने उन्हें आगे चलकर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और राष्ट्रध्वज निर्माण की दिशा में अग्रसर किया।

2. स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान

पिंगली वैंकय्या केवल एक साधारण जीवन जीने वाले प्रेरक व्यक्तित्व के धनी थे। महज 19 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना जॉइन की और एंग्लो-बोअर युद्ध (1899-1902) के दौरान दक्षिण अफ्रीका भेजे गए। सेना सेवा के साथ-साथ उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए भी बराबर चिंता की। वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, चरखा और खादी जैसे आंदोलनों के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। तिरंगे के शोध हेतु उन्होंने 5 वर्षों तक विश्व के विभिन्न देशों के ध्वजों का अध्ययन किया और ‘भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज’ नामक प्रामाणिक पुस्तिका प्रकाशित की, जिसमें 30 से अधिक संभावित झंडों के डिजाइनों का उल्लेख था।


3. महात्मा गांधी से भेंट और तिरंगे की प्रेरणा

दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान ही पिंगली वैंकय्या जी की पहली भेंट महात्मा गांधी से हुई। गांधी जी का विचार, सरलता, देशभक्ति और आत्मनिर्भरता ने वैंकय्या जी पर गहरा प्रभाव डाला। गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने संकल्प लिया कि भारत के लिए एक ‘राष्ट्र ध्वज’ होना चाहिए, जो देश की विविधता, एकता और स्वाधीनता की पहचान बने।

“झंडा न केवल राष्ट्र की पहचान है, बल्कि उसकी आत्मा, एकता एवं स्वाभिमान का प्रतीक भी।” – पिंगली वैंकय्या

     4. 1921 में कांग्रेस अधिवेशन में प्रस्तुत झंडे का वर्णन

1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में, पिंगली वैंकय्या जी ने स्वयं-निर्मित भारतीय झंडा महात्मा गांधी को भेंट किया। उस समय का झंडा दो रंगों – लाल (हिंदू समुदाय) और हरा (मुस्लिम समुदाय) – की क्षैतिज पट्टियों से बना था। मध्य में एक चरखा अंकित था, जो गांधी जी द्वारा प्रोत्साहित स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। गांधी जी के सुझाव पर वैंकय्या जी ने इस झंडे में सफेद रंग जोड़ा, जिससे यह तिरंगा बन गया – सफेद पट्टी शांति और देश के अन्य समुदायों का प्रतिनिधित्व करने लगी।

5. तिरंगे से पहले भारत के ध्वज: 1906, 1917, और 1921 के ध्वजों की जानकारी

तिरंगे से पहले अलग-अलग ऐतिहासिक कालखंड में भारत में निम्नलिखित ध्वज प्रयोग किए गए:

वर्ष   स्थान/ध्वज रंग / प्रतीक ऐतिहासिक संदर्भ
1906      पारसी बागान स्क्वायर, कोलकाता हरा (ऊपर), पीला (बीच), लाल (नीचे);
हरे में 8 कमल, पीले में 'वन्देमातरम्', लाल में सूर्य-चंद्रमा
बंगाल विभाजन, स्वदेशी आंदोलन के दौरान पहली बार राष्ट्रीय झंडा स्वरूप प्रयुक्त हुआ।
1917   होमरूल मूवमेंट पाँच लाल, चार हरी क्षैतिज पट्टियाँ;
ऊपर यूनियन जैक, बाएं सफेद अर्धचंद्र तारा, दाएं सप्तऋषि
बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट के नेतृत्व में स्वशासन की मांग के प्रतीकस्वरूप।
1921    विजयवाड़ा कांग्रेस अधिवेशन लाल (हिंदू), हरा (मुस्लिम), मध्य में चरखा;
बाद में सफेद रंग जोड़ा गया
राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सौहार्द व आत्मनिर्भरता का प्रतीक


6. स्वतंत्र भारत का तिरंगा – संरचना, रंगों का अर्थ, और अशोक चक्र

22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने पिंगली वैंकय्या जी द्वारा प्रेरित तिरंगे को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। तिरंगे की संरचना और प्रतीकों की विशेषता:

  • तीन बराबर क्षैतिज पट्टियाँ:
  • ऊपर गहरा केसरिया (saffron) – साहस, त्याग, और बलिदान का प्रतीक
  • बीच सफेद – सच्चाई, शांति, और पवित्रता का द्योतक
  • नीचे हरा – समृद्धि, श्रद्धा, और भूमि की प्राचुर्यता का प्रतीक
  • सफेद पट्टी के मध्य अशोक चक्र है – नीले रंग में, 24 तीलियों वाला धर्मचक्र (सारनाथ के अशोक स्तंभ से प्रेरित),जो प्रगति व सतत बदलाव का परिचायक है
"राष्ट्रध्वज के नीचे हम सभी एक हैं – जाति, भाषा, धर्म एवं प्रदेश की सीमाओं से ऊपर उठकर।"
7. पिंगली वैंकय्या जी को दिए गए सम्मान और उनकी स्मृति

पिंगली वैंकय्या जी का स्वाधीनता के बाद जीवन बहुत साधारण रहा; उन्हें तत्काल कोई बड़ा सरकारी सम्मान नहीं मिला। लेकिन कालांतर में उनकी गहन साधना और ध्वज के प्रति योगदान को राष्ट्र ने स्वीकारा:

  • 2009 में भारतीय डाक विभाग द्वारा उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया।
  • आंध्र प्रदेश व अन्य राज्यों में कई सड़कें, शिक्षण संस्थाएं व स्मारक उनके नाम पर हैं।
  • गृह मंत्रालय एवं कई स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उनकी जयंती (2 अगस्त) को ‘राष्ट्रीय झंडा सम्मान दिवस’ के रूप में मनाने की पहल जारी है।

4 जुलाई 1963 को उनका देहावसान हुआ, लेकिन आज उनका नाम तिरंगे के साथ अमर हो गया है।

8. वर्तमान भारत में तिरंगे की भूमिका और प्रेरणा

आज भारतीय तिरंगा सिर्फ एक ध्वज नहीं, बल्कि देश की आत्मा, अस्मिता, एकता, और अखंडता का परिचायक है। ‘हर घर तिरंगा’, ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ जैसी मुहिम तिरंगे को घर-घर तक पहुंचाने और देशभक्ति की चेतना जागृत करने में अग्रणी हैं। राष्ट्रध्वज और पिंगली वैंकय्या का त्याग देश के युवाओं को प्रेरित करता है कि वे जाति, धर्म, भाषा से ऊपर उठकर भारत की गरिमा, एकता, लोकतंत्र और समरसता की रक्षा-संरचना में अपना योगदान दें।

 राष्ट्र ध्वज साधक – श्री पिंगली वैंकय्या जी
 “एकता का प्रतीक, तिरंगा हमारा शान; पिंगली वैंकय्या का स्वप्न, भारत की पहचान!” 

जय हिन्द !! वन्देमातरम !! 🇮🇳

 Pingali Venkayya –

 The Visionary Behind India’s National Flag 🇮🇳

Pingali Venkayya, born on August 2, 1876, in a humble village in Andhra Pradesh, was a multilingual scholar, geologist, and true patriot. He studied at Cambridge University and served in the British Indian Army during the Anglo-Boer War, where he met Mahatma Gandhi — a turning point that inspired his lifelong devotion to India’s freedom and unity.

Venkayya meticulously studied over 30 global flags and presented India’s first proposed national flag in 1921. It had red and green bands for Hindu-Muslim unity, with a spinning wheel symbolizing self-reliance. Later, Gandhi suggested adding white for peace — forming the foundation of our current tricolor.

On July 22, 1947, his vision became the official flag of independent India — saffron for courage, white for peace, green for prosperity, and the navy-blue Ashoka Chakra for progress.

Though he lived modestly, his contribution is immortal. Today, India salutes his legacy with “Har Ghar Tiranga” and celebrates his dream of unity through the flag.

“The tricolor is not just a flag — it is India’s soul.”
Vande Mataram! Jai Hind! 

© 2025 Naresh Sharma – Sankalp Seva | एक संकल्प, एक प्रकाश, अनंत जीवन।

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