पहाड़ों से मिला सबक – प्रकृति, परंपरा और बदलाव की सच्ची कहानी

Sankalp Seva
By -
0

 बदलाव का संदेश – पहाड़ों से 


हिमालय की गोद में गाँव

हिमालय की गोद में बसा एक छोटा-सा गाँव… चारों ओर देवदार और चीड़ के वृक्ष जैसे पहरेदार बनकर खड़े हैं । सुबह-सुबह सूरज की किरणें जब बर्फ से ढकी चोटियों को सुनहरी आभा देतीं, तो लगता मानो पर्वत स्वर्ण-मुकुट धारण कर रहे हों। बहती हुई छोटी-छोटी धाराएँ, जिनके किनारे जंगली फूल खिलते रहते है। पहाड़ की हवा में ऐसी ताजगी हैं कि थकी हुई आत्मा को भी तरोताज़ा  करती है।

इस गाँव के लोग सादगी से जीते थे। मिट्टी के घर, लकड़ी की छतें, आँगन में जलती चूल्हे की आँच और ओबरे के बहार बंधे मवेशी, खेत-खलिहान के साथ —  जीवन की पहचान थी।

लेकिन समय बदला। गाँव में सड़क आई, शहरों से मोबाइल टावर खड़े हुए, और धीरे-धीरे पहाड़ की शांति में हलचल घुलने लगी। पहले जहाँ बच्चे खेल के मैदान में पहाड़ों की ढलानों पर दौड़ते थे, अब वही बच्चे मोबाइल स्क्रीन पर झुके रहते। जहाँ हर घर से बांसुरी और ढोल-नगाड़े की धुन सुनाई देती थी, वहाँ अब ऊँची आवाज़ में बजते स्पीकर में गाने सुनाई देने लगे।

जंगल और सड़क की कहानी

गाँव के पास एक बहुत पुराना जंगल था। उस जंगल के देवदार के पेड़ सैकड़ों वर्षों से खड़े थे, मानो धरती की जड़ों से आकाश को थामे हुए हों। इन्हीं पेड़ों के बीच से एक चार किलोमीटर लंबा पगडंडी रास्ता निकलकर हाईवे से गाँव तक आता था। एक दिन गाँववालों ने अपनी सुविधा और समृद्धि के लिए इस जंगल से होकर एक कच्ची सड़क बना दी। इससे गाँव में खुशहाली की लहर दौड़ आई थी। अब बसें भी आने लगीं, मालवाहक गाड़िया भी जो किसानों व बागवानों के लिए उनकी फ़सलों को बाजार तक पहुचाने में बहुत मददगार सिद्ध हुई, सड़क से गांव में बहुत चहल-पहल लौट आई। लेकिन यही जंगल एक दिन लकड़ी के माफ़ियाओं की नज़र में आ गया।

वे रात को चोरी-छिपे आते, पेड़ों को काटते और गाााडियों में छिपाकर लकड़ी शहर के बाज़ारों में बेच देते। केवल दो-तीन सालों में आधा से ज़्यादा जंगल उजाड़ कर दिया गया। देवदार की छाया गायब हो गई, पक्षियों के घोंसले उजड़ गए और पहाड़ की धरती कमजोर होने लगी।

भूस्खलन का कहर

फिर एक दिन बरसात के मौसम में अचानक गाँव में भारी भूस्खलन हुआ। लगातार बारिश के कारण खेत बह गए, कई घरों की दीवारें गिर गईं। जो धाराएँ कभी गांव की जीवनदायिनी थीं, वही उफनकर गाँव के रास्ते काट गईं। जिससे लोग भयभीत हो उठे। गांव में एक बजुर्ग व्यक्ति थे धर्म दादा ...जो बहुत नेक दिल और प्रेरक व्यक्तित्व के धनी थे। लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। एक दिन उन्होंने गांव के युवाओ को एकत्रित किया और इस संकट से कैसे निपटे, इस पर सभी के विचार सुने। और फिर अंत में बोले .........

    धरम सिंह दादा का संदेश

“देखो भाइयों, प्रकृति का संतुलन बिगड़ने पर यही होता है। हमने जंगल काटे, नदियों का रास्ता रोका, और अब भुगतना पड़ रहा है। हमें फिर से अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। अगर हम बदलेंगे नहीं, तो पहाड़ हमें अपनी गोद से बाहर कर देंगे।”

उनके शब्दों ने गाँववालों के दिलों को झकझोर दिया। 

परिवर्तन की शुरुआत

अंततः गाँववालों ने तय किया कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे। लकड़ी माफ़ियाओं के आतंक से जंगल को बचाने के लिए उन्होंने रात-रात भर पहरा देना शुरू किया। कई बार गाँव के नौजवानों ने अपनी जान जोखिम में डालकर माफ़ियाओं को पकड़कर पुलिस के हवाले किया। धीरे-धीरे अपराधियों के हौसले पस्त हो गए। गाँव के लोगों ने मिलकर शपथ ली — “हम अपनी ज़मीन, अपने जंगल और अपने जल-स्रोतों की रक्षा करेंगे, यही हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य है।”

इसके साथ ही उन्होंने प्रकृति के संरक्षण का संकल्प भी लिया। हर परिवार ने निश्चय किया कि वह हर वर्ष कम-से-कम 10 पौधे अवश्य लगाएगा। गाँव के चौपाल में ढोल-नगाड़ों की गूंज फिर सुनाई देने लगी। बच्चे मैदानों में दिखाई देने लगे, खेलों में फसलें लहराने लगी। महिलाएँ पुराने लोकगीतों को गाने व संजोने लगीं और युवाओं ने अपनी संस्कृति को जीवित रखने का बीड़ा उठाया।

धीरे-धीरे गाँव की पहचान बदलने लगी। यह वही गाँव था जहाँ लोग आधुनिक सुविधाओं से जुड़े थे, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूले थे। पहाड़ की सुंदरता फिर से मुस्कुराने लगी। देवदार की खुशबू और पक्षियों का मधुर गान मानो यह कह रहे हों कि सच्चा बदलाव वही है, जिसमें प्रकृति और संस्कृति का संगम बना रहे।

📖 शिक्षा (Message of Change)

बदलाव अनिवार्य है, लेकिन वह बदलाव तभी सार्थक है जब उसमें हमारी परंपराओं, प्रकृति और मूल्यों की सुगंध शामिल हो।

पहाड़ हमें सिखाते हैं कि आधुनिकता अपनाओ, पर अपनी जड़ों को मत भूलो। अगर इंसान और प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है, तो जीवन कठिन हो जाता है; लेकिन जब दोनों साथ चलते हैं, तो जीवन स्वर्ग से सुंदर हो जाता है।

🌍 Intro for Foreign Visitors 

In the heart of the Himalayas lies a timeless story of a village, surrounded by tall cedar and pine trees, where nature and culture once lived in perfect harmony. The people lived simple lives — mud houses, wooden roofs, warm fireplaces, and heartfelt bonds. But with the arrival of roads, mobile towers, and the temptations of modern life, the quiet balance of the mountains slowly began to change.

What once were playful children running across slopes turned into young eyes bent over screens. The sound of traditional flutes and drums gave way to loud televisions and modern songs. Worse still, a centuries-old forest fell prey to illegal logging mafias. Trees that had stood for generations were cut down in just a few years, leaving the hills bare, fragile, and vulnerable. The result was devastating: heavy rains and landslides swept away fields and homes, reminding everyone that disturbing nature comes with a price.

But from this destruction came awakening. Guided by village elder Dharam Singh, the people pledged to guard their land, water, and forests. Families began planting at least ten trees each year, reviving traditions of music, festivals, and community spirit.

This is not just a village’s story — it is a message to the world: true change must blend modern progress with the fragrance of culture and the wisdom of nature.

© 2025 Blood Donor Naresh Sharma – Sankalp Seva  |एक संकल्प, एक प्रकाश, अनंत जीवन।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

आपका विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण है। कृपया संयमित भाषा में कमेंट करें।

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Out
Ok, Go it!